सच को झूठा मत कहना - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'

सच अगर तुम कह न सको तो 
सच को झूठा मत कहना,
दीन धर्म को पीछे रखकर
पाप कर्म तुम मत करना।

सच्चाई की ख़ातिर कितने
मिट गए सीना तान के,
जला कर निज सुख वैभव
मातृभूमि की आन पे।
कितनों ने है जीवन वारा
तुम भी पीछे मत रहना॥

वाणी की मधु को तुम
हवा में कुछ ऐसे घोलो,
मीठा गर तुम कह न सको तो
विष सी वाणी ना बोलो।
उजियारे की ताक़त को
काट सका कब तम घना॥

जीव सदा ही सुख पाते
शीतल जल औ वन से,
पूजित हुई सरिता और नग
सदा निज कर्म से।
धर्म की राग गा न सको तो
विधर्मी क्योंकर बनना॥


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