सच्चे प्यार का रिश्ता - कहानी - मानव सिंह राणा 'सुओम'

आज राजकुमार सुबह से ही बहुत ख़ुश था। आज वो पिछले पाँच वर्ष बाद अपने घर जा रहा था। सभी पैकिंग तो कल ही कर दी थी। न्यूयॉर्क से उसकी फ्लाइट दो घंटे बाद थी वो जल्दी जल्दी रूम से निकल कर टैक्सी पकड़ कर एयर पोर्ट आया और अपनी फ्लाइट में बैठ गया। पुरानी यादें उसे आज बहुत याद आ रही थी।

सुनयना जब पहली बार उसे मिली थी तो वह उसके सुंदर बालों को देखकर फ़िदा हो गया था। सूरत से जितनी सुंदर थी सुनयना उससे कहीं ज़्यादा तो सीरत की भली थी वह। यह अलग बात थी कि उसके बालो की बहुत तारीफ़ की थी उसने। अब सुनयना से मिलने की तमन्ना चरम पर थी। मन कर रहा था जल्दी से सोचूँ और दिल्ली पहुँच जाऊँ।

दूसरे दिन फ्लाइट ज़ब दिल्ली पहुँची तो जल्दी ही घर पर पहुँच गया। घर में अंदर पहुँचा तो सुनयना नौकरानी से बात कर रही थी। बातें सुनकर कमरे के बाहर ही ठहर गया राजकुमार।

“सुनो मालती ये बीमारी से मेरे सारे बाल उड़ गए हैं। मैं आज ज़ब वो आएँगे तो उनके पास कैसे जाऊँगी? उन्होंने तो मुझसे प्यार ही मेरे बालो की वजह से किया था। इस रूप में उनके सामने जाने से अच्छा है कि मैं मर ही जाऊँ।” सुनयना ने रोते हुए नौकरानी मालती से कहा।

राजकुमार बहुत दुःखी हो गया। मालती सुनयना को समझा रही थी। राजकुमार दुःखी मन से बाहर निकल आया। टैक्सी में बैठा और कहीं निकल गया।

अचानक फ़ोन की घंटी बजी तो सुनयना ने फोन उठाया।

“हेलो!”

“हेलो! आप कौन?” सुनयना ने पूछा।

“मैं डॉ॰ त्रिपाठी बोल रहा हूँ। आपके पति राजकुमार जी का एक्सीडेंट हो गया है। अब ख़तरे से बाहर हैं। आप हॉस्पिटल आ जाइए। परेशान मत होना। आराम से आइए।” दूसरी तरफ़ से कहा गया।

“कब? कैसे? मैं अभी आती हूँ डॉ॰ साहब।” सुनयना ने हड़बड़ा के कहा।

दूसरी तरफ़ से फ़ोन कट कर दिया गया। सुनयना दौड़ी-दौड़ी हॉस्पिटल पहुँची तो पता चला कि राजकुमार की आँखें चली गईं है अब कभी वो नहीं देख पाएँगे। 4-5 दिन हॉस्पिटल में रहकर वो घर आ गया। अब सुनयना अपने बालो को भूल चुकी थी अब केवल उसकी ज़िंदगी का एक ही मक़सद बन चूका था वो मकसद था राजकुमार की आँखें बनना। वो ख़ुद राजकुमार की आँखें बन गई।

समय बीतता गया। समय के साथ सुनयना की बीमारी ठीक हुई और उसके फिर से बाल पहले जैसे सुंदर और लम्बे हो गए। अब अफ़सोस था तो सिर्फ़ ये कि जिनको इन बालों की तारीफ़ करनी थी वो अब देख नहीं सकते थे।

एक दिन डॉक्टर त्रिपाठी घर पर मिलने आ गए।

“आइये डॉक्टर साहब! बैठिए इनके पास। आप बात करिए। मैं तब तक आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ।” सुनयना कहते हुए उठकर रसोई में चली गई।

“और सुनाओ राजकुमार जी क्या हाल है? क्या नाटक अभी तक चल रहा है?” डॉक्टर साहब ने पूछा।

उधर सुनयना को याद आया कि अदरक तो सुबह सब्जी काटते समय राजकुमार के कमरे में ही रख दी थी। वह कमरे के गेट पर आई तभी डॉक्टर की नाटक वाली बात सुनकर ठिठक गई।

“डॉक्टर साहब क्या करूँ? उस दिन जब मैं घर आया तो सुनयना अपने बालो को लेकर दुःखी थी। मैं नहीं चाहता था कि वह मुझे अपने आप को इस रूप में दिखाकर दुःखी हो इसलिए मैंने आपसे मिलकर अँधे होने का नाटक किया। मैं उसे बालों की वजह से नहीं दिल से प्यार करता हूँ। उसको दुःखी नहीं देख सकता। अब बताना चाहता हूँ पर झिझक लगती है वो क्या समझेगी?” राजकुमार ने विस्तार से बताया।

“तुम्हारे प्यार को दिल से नमन करता हूँ। मैं तो इधर से निकल रहा तो मिलने चला आया।” डॉक्टर साहब ने बताया।

सुनयना स्तब्ध हो गई। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था क्या कहे? वो सीधे अंदर गई और राजकुमार के पैरो में गिर गई और रोने लगी। राजकुमार और डॉक्टर त्रिपाठी को समझते देर न लगी कि सब कुछ पता चल गया है।

“मेरी वजह से आपने कितना कष्ट झेला है। क्या ज़रूरत थी इतना सब करने की। बस मुझे डाँट दिया होता। मैं तो वैसे ही चलती जैसे आप कहते।” सुनयना रोते-रोते कहते चली गई।

राजकुमार और सुनयना दोनों गले लग कर रोने लगे और डॉक्टर त्रिपाठी वक़्त की नज़ाकत को समझ कर बाहर निकल गए। डॉक्टर त्रिपाठी सोचने लगे यह होता है सच्चा प्यार। कहाँ लोग एक दूसरे को रिश्तों में धोका देने में लगे है वही ऐसा प्यार करने वाले राजकुमार और सुनयना जैसे लोग भी हैं। यही प्यार का रिश्ता है। सच्चे प्यार का रिश्ता।

मानव सिंह राणा 'सुओम' - रोहिना सिंहपुर, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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