नहीं ये दिल सम्भलता है - गीत - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

मिलन को आपसे प्रियवर,
बहुत ही मन मचलता है।
बहुत रोका मचलने को,
नहीं ये दिल सम्भलता है॥ 

मिलन के दृश्य अब अपनें,
स्वप्न में आ भटकते हैं।
बहुत आती सखी यादें,
दिलों में दिल धड़कते हैं॥ 
आहटें पैर की तेरी,
दिलोंअहसास भरती हैं।
लालिमा ओंठ की तेरी,
दिलों का चैन हरती हैं॥
ठंढ इतनी अधिक बाहर,
दिलों से कपकपी छूटे,
रजाई सात हों ऊपर,
फिरहु दिल प्यार पलता है।
बहुत रोका मचलने को,
नहीं ये दिल सम्भलता है॥ 

कभी गिरना कभी उठना,
दिलों अहसास होता है।
कभी अहसास दूरी का,
मित्र उपवास होता है॥ 
सुबह सोंधी चाय ख़ुशबू,
दिलों भीतर धमकती थी।
मनों अहसास को पाकर,
दिलों ज्वाला धधकती थी॥ 
मिलन अपना धरा पर है,
एक अहसास भर बाक़ी,
कहाँ मेरी दिलों धड़कन,
अश्रु नैनों से ढलता है।
बहुत रोका मचलने को,
नहीं ये दिल सम्भलता है॥ 
मिलन को आपसे दिलवर,
बहुत ही मन मचलता है॥ 

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos