कुरुक्षेत्र भी फूट-फूट रोया है - कविता - मयंक द्विवेदी

समय रेत के साँचों पर
शर शैय्या के बाणों पर
चुभते तीरों की नोकों पर
एक युगपुरुष सोया है
देख-देख उसको भी
करूक्षेत्र भी फूट-फूट रोया है।

प्रतीज्ञा के फेरो ने
विवशता के घेरो ने
शकुनी के पासो ने
षडयन्त्रों और झासों ने
शत्रुता का बीज बोया है
कुरुक्षेत्र भी फूट-फूट रोया है।

चीर चीरता दुश्शासन
डग-डग भरता दुर्योधन
मूक बना था तब शासन
डोल उठा था सिंहासन
भभक रहा था लाक्षाग्रह
चीख़ रहा था अभिमन्यु
दूत बने थे मुरलीधर
आँचल ढकते मधुसुदन
अन्याय न्याय पर जब चढ़ आया
दुर्योधन को कोई रोक ना पाया
कुरुक्षेत्र के रण में
स्वार्थ परमार्थ के प्रण में
बींध रहे है भीष्म पितामह
बींध रहे है भीष्म पितामह
आज अंतिम निर्णय होगा
भाई-भाई में रण होगा
प्राप्त हुए छल बल से
कुरुक्षेत्र के दल-दल से
इतिहास कलंकित हुआ विकट
मिल भी जाए चाहे मुकुट
उसने भी तो भीष्म पितामह खोया है
कुरुक्षेत्र भी फूट-फूट रोया है।
 

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