कब मिलोगे बोलिए जी - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122  2122

कब मिलोगे बोलिए जी,
चुप ज़ुबाँ को खोलिए जी।

याद में छुप कर बहुत दिन,
अब बहुत दिन रो लिए जी।

क्यों बसे आकर ज़हन में,
क्यों तसव्वुर हो लिए जी।

है अगर हमसे मुहब्बत,
लफ़्ज़ से रस घोलिए जी।

है ज़रूरत एक हाँ की,
शब्द भी क्या सो लिए जी।

कर सके पूरे न वादे,
दोस्त ख़ुद को तोलिए जी।

देखिए हमने नयन भी,
आँसुओं से धो लिए जी।


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