कल पड़े जाना भले ही आज जाएँ जान से - ग़ज़ल - धर्वेन्द्र सिंह 'बेदार'

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122 2122 2122 212

कल पड़े जाना भले ही आज जाएँ जान से,
हम जिए हैं हम जिएँगे हम मरेंगे शान से।

ना-ख़ुदाओं के भरोसे नाव कैसे छोड़ दें,
ख़ुद बचाएँगे हम अपनी कश्ती को तूफ़ान से।

हाल ही में तुर्किए में ज़लज़ले के क़हर से,
हाथ धो बैठे बहुत से लोग अपनी जान से।

जान भी क़ुर्बान कर देंगे वतन के वास्ते,
हमको है बेहद मुहब्बत मुल्क हिंदुस्तान से।

ऐ अमीरी तू ही क्यों दुल्हन रईसों की बने,
ऐ ग़रीबी तू भी रच शादी किसी धनवान से।

ज़िंदगी के इम्तिहाँ में उन सवालों के जवाब,
होते हैं मुश्किल बहुत जो लगते हैं आसान से।

किसलिए आँसू बहाते हो किसी की मौत पर,
लौटकर आते नहीं मुर्दे कभी श्मशान से।

आप आख़िर आ गए 'बेदार' सच की राह पर,
ख़ैर छोड़ो ग़लतियाँ हो जाती हैं इंसान से।

धर्वेन्द्र सिंह 'बेदार' - भिवानी (हरियाणा)

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