कवि! तुम क्यों कविता करते हो? - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'

कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना!
प्रश्न आपने पूछा ही है, तो फिर उत्तर देना होगा।

सच पूछो तो इस युग के हर, बेज़ुबान की मैं ज़ुबान हूँ। 
या यूंँ कहो विकल बेबस का, करुणा पोषक समाधान हूँ॥ 
वे निरीह जिनकी भाषाएँ, समझ नहीं पाते जग वाले। 
कवि उनकी बातें करते हैं, पी-पी सदा ज़हर के प्याले॥ 

हमें हमेशा कविता द्वारा, इन्हें समादर देना होगा। 
प्रश्न आपने पूछा ही है तो फिर उत्तर देना होगा॥ 
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! 

कितने कहाँ कौन भूखे हैं, कितने कण्ठ अतृप्त रह गए। 
किन संवेदनशील मनों के, सपने डूबे और बह गए॥ 
सिंहासन को दीन दुखी की, पीड़ा का आभास हो सके। 
कवि की बातें सुनकर दानव, भी दुनिया का दास हो सके॥ 

इस उधेड़बुन में कविता को, पल-पल अवसर देना होगा। 
प्रश्न आपने पूछा ही है, तो फिर उत्तर देना होगा॥
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! 

सामाजिक ताने बाने में, नए रंग भरने पड़ते हैं। 
कहीं कथीर कहीं पर हीरे, सोच समझ जड़ने पड़ते हैं॥ 
जीव जगत की प्यास बुझाने, जैसे घन सरिता भरते हैं। 
वैसे ही हर व्यथा कथा पर, सारे कवि कविता करते हैं॥ 

हर उड़ान पर हर विहंग को, आश भरा पर देना होगा। 
प्रश्न आपने पूछा ही है, तो फिर उत्तर देना होगा॥ 
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! 

रुदन प्रेम शृंगार विरह दुख, वैभव ओज घृणा गाने को। 
स्वत: लेखनी मचला करती, सम्बन्धित को समझाने को॥ 
कविता करना शौक नहीं है, आया जटिल विवशता लेकर। 
ईश्वर ने भेजा वरदाई, लिखने की परवशता देकर॥ 

वाणी का वरदान यही है, ध्यान रात दिन देना होगा। 
प्रश्न आपने पूछा ही है तो फिर उत्तर देना होगा।। 
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! 

जग को सुन्दरतम् गढ़ने की, ललक लेखनी लिए हुए है। 
इस रचना में भी कुछ ऐसी, झलक लेखनी लिए हुए है॥ 
तुम्हें तुम्हारे प्राण प्रश्न का, क्या उत्तर मिल गया बताना। 
आगे से कवि की करनी, पर ऐसे ही मत प्रश्न उठाना॥ 

वरना मुझे पुनः आ-आ कर, सबका उत्तर देना होगा। 
प्रश्न आपने पूछा ही है, तो फिर उत्तर देना होगा॥ 
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! 

गिरेंद्र सिंह भदौरिया 'प्राण' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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