अनुबन्धन मधुमास प्रिय, कहाँ छिपे चितचोर।
बासन्ती मधुरागमन, प्रेम नृत्य प्रिय मोर॥
कोमल प्रिय ललिता लता, मैं कुसुमित नवप्रीत।
नव वसन्त रसराज हिय, गाऊँ जीवन गीत॥
गुलशन दिल लखि साजना, सुरभित प्रेम पराग।
गन्धमादन महके वदन, प्रीतम प्रीत सुहाग॥
प्रेम मिलन परिणीत हिय, परिणीता मनमीत।
मनमोहन मधुयामिनी, गाऊँ सरगम गीत॥
विहँस रही नवप्रीत लखि, चन्द्रकला निशिकांत।
तारक मुक्ता मणि जड़ित, लसित प्रिया शशि शांत॥
धवला पद्मासन समा, श्वेत वसन परिधान।
प्रेम लेप तन मन प्रियम, कुंकुम भाल सुहान॥
चहके द्विज पक्षी चहुँ, कलरव प्रेम निनाद।
आ साजन मधुमास में, करो प्रीत आबाद॥
सजा प्रेम की आसियाँ, प्रेम रोग आक्रान्त।
घायल विरही घाव मन, प्रेम लेप कर शान्त॥
कुसुमायुध घायल सनम, कामदेव धनु बाण।
आलिंगन मधुरिम सजन, संजीवन बन प्राण॥
उषा काल शुभ अरुणिमा, लाए प्रीति बहार।
पीली कलसी यौवना, दे वसन्त उपहार॥
भंवर प्रीत देखो सजन, करे प्रीत गुलज़ार।
फूलों पर मंडरा रहा, करता प्रेम विहार॥
बनी आज रस माधुरी, चढ़ी फागुनी रंग।
प्रेम रंग की नशा में, थिरके साजन अंग॥
मधुशाला मधुमास प्रिय, करो सजन मधुपान।
बहे मलय शीतल सुभग, पंचम स्वर पिक गान॥
कमल सरोवर जल खिले, सुरभित कण मकरन्द।
प्रेम लीन अलिगूंज से, संगम प्रिय आनन्द॥
खिली प्रकृति मन फागुनी, इन्द्रधनुष सतरंग।
खिली प्रिया हिय रवि किरण, थिरके तन मन अंग॥
बनी प्रेम वय किशोरी, सम्पुट आश विलास।
लगन लगी मधुमास में, यौवन प्रेम मिठास॥
चाह प्रेम वय षोडशी, उन्मादित उर भार।
ले हिलोर यौवन वयस, प्रेम साज शृंगार॥
कशिश दिली अहसास बन, प्रेम पत्र उद्गार।
पलकों में आँखें छिपी, अश्क लजाती धार॥
आ बालम जीवन सखे, रचो प्रेम संसार।
बाँधों महफ़िल-ए-समाँ, सरगम प्रेम बहार॥
क़ातिल बन ऋतुराज दिल, भरता प्रेम तरंग।
प्रेम विरह अद्भुत गहन, हार जीत मन जंग॥
आ साजन गुलशन करो, उपवन प्रेमी चित्त।
फैलाओ निशि चंद्रिका, विरह आग आवृत्त॥
कुसुमित कुसुमाकर कुसुम, कोकिल कूक मिठास।
आशिक़ तुम मैं आशुका, सप्त बन्ध अभिलास॥
महके हृदयांगन प्रिये, चारुचंद्र मुख हास।
करो प्रीत नवनीत रस, मन मुकुंद रच रास॥
आया नवरस रागिनी, प्रेम रोग हो अन्त।
बासन्तिक कवि काकिली, जीवन कीर्ति अनन्त॥
डूबें सागर प्रेम जल, करें प्रीत संसार।
कवि निकुंज प्रेमांजली, हो निशीथ उपहार॥
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली