अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122 2122
आज कुछ लिखने का मन है,
प्रीत का जागा बचपन है।
मिलन दिल को छूने आ रहा,
विरह कर रहा पलायन है।
लगा है बिना कहे ही आज,
महकने फिर से गुलशन है।
ग़ज़ल लगता है हर इक लफ्ज़,
भा रहा यह पागलपन है।
याद जैसे ही आई याद,
खिला मुरझाया जीवन है।
आज 'अंचल' ख़ुद से कर बात,
सोच पर छाया यौवन है।
ममता शर्मा 'अंचल' - अलवर (राजस्थान)