संदेश
कब ढले शाम अनज़ान समझ - गीत (मुक्तक) - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन की ढलती शाम समझ, पल पल अनुपम अलबेला है। सौगात तुम्हें दी है कुदरत, गाथा नव सत्पथ लिखना है। सोपान नया उत्थान समझ, न…
करवा चौथ - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मैनें अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखा है, हाथों में मेंहदी, पैरों में महावर सुंदर परिधानों, आभूषणों से खुद को खूब सजाया है। …
लड़कपन - कविता - कर्मवीर सिरोवा
मोबाईल के जौबन को बचपन बेच दिया, मैदान खाली, बल्ला कहाँ हैं तुम भूल गए।। स्कूल से घर आते ही छत दौड़कर जाते थे, पतंग बनाना तो दूर, तुम उ…
ऐ! ज़िंदगी - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ! ज़िंदगी तेरे लिए हमने बहुत हैं दुःख सिंये। ऐ! आशिकी तेरे लिए आँख ने आँसू पिये। बे मुरब्बत ज़िंदगी तू रूठती मुझसे रही। बेरहम ये जख़्म स…
अधीर मत हो मन - कविता - डॉ. कुमार विनोद
गोधूली की बेला में मेरी उम्मीदें डरपोक सांझा चुल्हे की तरह अर्थहीन जिंदगी के अस्तित्व को समेटे मुक्ति की छटपटाहट से उपजे सवालों पर स…
ख़ुदा जब इम्तिहान लेता है - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
हाल बन्दों का जान लेता है, ख़ुदा जब इम्तिहान लेता है! ख़ौफ़ दुश्मनों का है शायद, मकां में वो अमान लेता है! चीखता है सन्नाटा शहर में, …
शब-ए-ग़म - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
मुझसे रूठकर तुम यूँ चले गये, मानो तन को जिंदा लाश बना गये। सारी तमन्नाएं मेरी दफ़न हो गयी, मेरी क़िस्मत शब-ए-ग़म बन गयी। दिल की धड़कनें मै…
माटी का घर - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
याद आता है माटी का वो घर जिसमें हमारा बचपन बीता। मोटी मोटी दीवारों वाला वो खपरैल का घर उसी माटी वाले घर में हम पले, बढ़े, खेले कूदे और…
हो बेटी निर्बाध - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
देखो कलियुग कालिमा, फैला है व्यभिचार। निशिदिन मरती बेटियाँ, लाचारी सरकार।।१।। लव ज़िहाद के नाम पर, परिवर्तन नित धर्म। फाँस रहे मासू…
आचार्य नरेन्द्र देव - जीवनी - अंकुर सिंह
सीतापुर के जाने माने वकील बलदेव प्रसाद के घर 31 अक्टूबर 1889 को बालक अविनाशी का जन्म हुआ जो आगे चलकर महान समाजवादी विचारक, शिक्षाशास्त…
पुनः धर्मयुद्ध - कविता - मनोज यादव
बस काल-काल में अंतर है, और समय में थोड़ा परिवर्तन है। नही तो द्युत सभा तो आज भी जारी, और सत्ता का भरपूर समर्थन है। धृतराष्ट्र लाख मिलें…
कब तक चलेगा खेल - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ! चाँद आज न जाने क्यूँ निःशब्द सी हूँ। तुझे देखकर बस यूँ ही स्तब्ध सी हूँ। कभी उनका तो कभी खुद का एक अक्स सा तुझमें उभरता है। बस फिर…
ये छोड़ दो पष्चिमी सहारा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
छोड़ दो ये पष्चिमी सहारा, हमे वतन ने आज पुकारा मानवता की ओर चलो, हिंदु मुस्लिम एक सारा। देश की आन को, सभ्यता की शान को, अपनी हर बान को,…
शब-ए-ग़म - कविता - पवन गोयल
तेरा हाथ क्या छूटा तेरा साथ भी छूट गया जो पाया था तेरे साथ से वो मक़ाम भी अब छूट गया।। इंसानियत पाई थी तेरे अक्ष से दो कदम चल पाई थ…
दिल के अल्फ़ाज़ - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
दिल के अल्फ़ाज़ मोहब्ब्त के नाम मैं लिखता हूँ, बात ये है कि तिरे जज़्बात मैं समझता हूँ। आँखों में तिरी इक तस्वीर मैं रखता हूँ, राह-ए-इश्क़…
गजगामिनी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गज गामिनि वह दर्प दामिनी , कल कल करती सरिता । निर्झरिणी सी झर झर झरती , ज्यों कविवर की कविता । कोमल किसलय कुमकुम जैसी , कनक कामिनी वनि…
कल देखा है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
नित कर्मों की बेला से जीवन को जीना सीखा है, जो ओढ़ चादर नील गगन की वो बच्चा सोते देखा है। कंचन वर्णी किरणों से पहले जगते जो देखा है, व…
माँ की ममता - कविता - आशाराम मीणा
निजधर्म को छोड़ छाड़ के, फंसा गलत इरादों में। चंद्रमा की शीतल छाया, मिले नहीं इन तारों में।। सहोदर का साथ छोड़कर, गया गैर इशारों में। म…
इरादा बदलाव का - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
बदहाल सूरत को बदल डालिए। सूबे की हालत को बदल डालिए। उग्र है सारी ख़िलक़त आघात से, अंध बादशाहत को बदल डालिए। हो रहा परेशान आवाम…
पर! कोई बात नही - कविता - प्रवीन "पथिक"
वेदना जगी! हृदय में वेदना जगी। मार पड़ी! ग़मों की मार पड़ी। विरान हो गया; सारा संसार। फिर एक बार, बारिश के थपेड़ों की झाड़ पड़ी। सपनें…
कभी हँसती, कभी रोती थी माँ - कविता - नीरज सिंह कर्दम
सड़क के उस पार खड़ी बुजुर्ग, बीमार महिला सामने वाले बंगला को बड़े ही ध्यान से निहार रही थी। सामने वाले बंगले से एक महंगी कार बाहर आती …
पहला इश्क - कविता - बिट्टू
गर ताउम्र ज़वा है जवानी का इश्क तो इस इश्क के महफ़िल में जिंदा हो कल हुई आज ख़तम वाली मोहब्बत पर क्यों तुम आज शर्मिंदा हो। लिखा करो म…
रोजगार चाहिए - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिश्तों में नहीं अब कारोबार ज़िल्लत-ए-ज़िंदगी को रोजगार चाहिए कर्म हो ऐसा के घर -बार चले कमाई अपनी ही हर-बार चले इल्म हो ये इंसानियत ज…
शारद शीतल पूर्णिमा - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शरदपूर्णिमा दिवस में, सिद्धियोग सर्वार्थ। धन वैभव सुख कीर्ति फल, दानपुण्य परमार्थ।।१।। सजी चारु षोडश कला, चन्द्रप्रभा रजनीश। महारास…
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