लड़कपन - कविता - कर्मवीर सिरोवा

मोबाईल के जौबन को बचपन बेच दिया,
मैदान खाली, बल्ला कहाँ हैं तुम भूल गए।।

स्कूल से घर आते ही छत दौड़कर जाते थे,
पतंग बनाना तो दूर, तुम उड़ाना भूल गए।।

इतवार के मुंतजिर हम सोमवार से होते थे,
छुट्टी के दिन भी क्यूँ तुम खेलना भूल गए।।

केशियो घड़ी की चूं चूं से खुश हो जाते थे,
क्यूँकर हालात बने कि तुम हँसना भूल गए।।

कंचे, पिठ्ठू, लंगड़ी टाँग, छुपन छुपाई,
गिल्ली डंडा मजेदार खेल तुम क्यूँ भूल गए।।

हरगिज़ ना मिलेंगी लड़कपन की ये दौलत,
कर्मवीर लूटा चूका, तुम कमाना भूल गए।।

कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)

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