ऐ! ज़िंदगी तेरे लिए हमने बहुत हैं दुःख सिंये।
ऐ! आशिकी तेरे लिए आँख ने आँसू पिये।
बे मुरब्बत ज़िंदगी तू रूठती मुझसे रही।
बेरहम ये जख़्म सारे दिन ब दिन तूने दिये।
दिल तड़पता रात दिन रूह है जोगन बनी।
बेबफा ये दर्द सारे झेलकर फिर भी जिये।
मोहब्बत में नही है फ़र्क जीने और मरने का।
बेखता ये सज़ा पाकर ज़िंदगी तुझको जिये।
हजारों ख्वाहिशें हो चुकीं हैं अब तो दफ़न।
याद में तेरी सनम जहरे समंदर पी लिए।
शमा बनकर, सुष्, पिघल ढलती रही।
फ़क़त रात ओ दिन जले दिल के दिये।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)