इरादा बदलाव का - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

बदहाल  सूरत  को बदल  डालिए।
सूबे की हालत  को बदल डालिए।

उग्र है  सारी ख़िलक़त आघात से,
अंध बादशाहत को बदल डालिए।

हो  रहा  परेशान  आवाम तो फिर,
पंगु सियासत  को  बदल  डालिए।

गर और नहीं सहा  जाता है सितम,
जुल्म की आदत को बदल डालिए।

शहर  में  मचा  आतंक  का  तांडव,
कामिल  हैबत  को  बदल  डालिए।

पानी  मयस्सर  नहीं  बूढ़े शज़र को,
काटने की नीयत को बदल डालिए।

'अनजाना' बगावत की धुआं देख,
तो नश ए सरवत को बदल डालिए।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

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