माँ की ममता - कविता - आशाराम मीणा

निजधर्म को छोड़ छाड़ के, फंसा गलत इरादों में।
चंद्रमा की शीतल छाया, मिले नहीं इन तारों में।।
सहोदर का साथ छोड़कर, गया गैर इशारों में।
माँ की ममता नहीं मिलेगी, इन ठगी बाजारों में।।।

पर नारी के वशीभूत में, भेद किया परिवारों में।
अलगाना विष घोल दिया है, नर तुने संतानों में।।
घर का भोजन कड़वा लागे, खड़ा चरे दुकानों में।
माँ की ममता नहीं मिलेगी, इन ठगी बाजारों में।।।

गाँव छोड़कर शहर भगा तू, डूबा झुठे सपनों में।
मक्कारी संगत चलके, खोया भरोसा अपनों में।।
मानवता को मार दिया तू, जिया गलत विचारो में।
माँ की ममता नहीं मिलेगी, इन ठगी बाजारों में।।।

नए दौर के चाल चलन ने, बांट दिया इंसानों में।
भूख प्यास से मरे आदमी, खाना बटे श्वानो में।।
काया मनकी भटके, ना मिलती तीज त्योहारों में।
माँ की ममता नहीं मिलेगी, इन ठगी बाजारों में।।।

माता पिता को छोड़ दिया है, तूने वर्धा आश्रमों में।
संतो की संगत को, चट कर गई धूल शास्त्रों में।।
तेरा रस्ता ताक रही है, दुर्जन गली गलियारों में।
माँ की ममता नहीं मिलेगी इन ठगी बाजारों में।।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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