पहला इश्क - कविता - बिट्टू

गर ताउम्र ज़वा है जवानी का इश्क
तो इस इश्क के महफ़िल में जिंदा हो
कल हुई आज ख़तम वाली मोहब्बत 
पर क्यों तुम आज शर्मिंदा हो।

लिखा करो मोहब्बत जैसे भी करके
रखना उसे याद दोनों की तरफ से
गर भूल गए उस पहले  इश्क की मिठास
 ना रास आने वाली किसी से अगली मुलाकात।

पत्ते पर मैंने कभी नहीं किया इज़हार
गर है इश्क किसी से तो क्यों करते इंतजार
लिख कर दो उसे इस तौर से
क्यों शर्माते हो आज के दौर से।

श्रृंगार अगर कोई भी करे तुम्हारे सामने
तो उसे पहली वाली की तरह बनाना
पूरे तो नहीं बस थोड़ा करके 
पहली इश्क को बचा जाना।

इस क़दर बटन पर उंगलियां घुमाना
के बन्द होते होते भी खुल जाए दुबारा
यूं भूले बिसरे याद करके इस मौके पर 
पहले मोहब्बत की तरह हो जाना।

गर चलते चलते इश्क होता है 
तो यह सभी उसके  पैगाम
पहली महबूबा बनकर गढ़ी है
तो पसंद के चहरे पर आएगी याद।

रूह तुम्हारा अभी भी वही है 
अब जिस्म  लेकर करते हो प्यार 
गर पहली मोहब्बत सच्ची है
तो वो जन्नत तक रहेगी बरक़रार।

एक कदम चलते हो तो 
दूसरा उसकी तरह रखना
गर किस्सा बन ही गया है तो
उसको आज भी जारी रखना।

बिट्टू - नई दिल्ली

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