कब ढले शाम अनज़ान समझ - गीत (मुक्तक) - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जीवन की ढलती शाम समझ,
पल पल अनुपम अलबेला  है।
सौगात  तुम्हें   दी   है  कुदरत,
गाथा  नव  सत्पथ  लिखना है। 

सोपान  नया   उत्थान  समझ,
नव  राह सुगम  नित गढ़ना है।
अवसाद   विघ्न  काँटे  चूभन,
संघर्ष  पथिक  नित  बढ़ना है।

आसान  नहीं उपलब्धि समझ,
अविराम सरित  बन  बहना है।
दर्दे    खाई    गिर  शिखर तुंग,
नित जलप्रपात  बन बढ़ना  है। 

घनघोर  घटा     जीवन  समझो
परहित   कल्याण   बरसना   है।
जो   बीत    गई   भूलो   मानस, 
अभिलाष  नया   रथ चढ़ना  है।

कब  ढले  शाम अनज़ान समझ,
सत्कार्य  प्रगति  पथ   रचना  है। 
संसाध    बिना  उत्तूंग     शिखर,
संसाध  ध्येय     ख़ुद   बनना  है। 

गतिमान काल अति पवन समझ, 
सबको तज उसको बढ़ जाना है।
रह   सावधान   बन  समयाकुल,
रच  कीर्ति  नयी   ढल   जाना है।

कर्तव्य  राष्ट्र    पुरुषार्थ   समझ,
परमार्थ    निकेतन   बनना    है।
अभिमान  वतन  निर्माण  यतन,
सद्नीति    प्रीति   रत  चलना है। 

गंभीर   धीर   रत   कार्य  कुशल,
निर्भीक   सबल   बन  लड़ना  है।
रह     मौन व्रती   ब्रह्मास्त्र समझ,
रणविजय लक्ष्य  बस   पाना   है।।

नश्वर    काया   अवसान   समझ,
अनमोल     धरोहर    मढ़ना    है।
बलिदान     जिंदगी   रत   भारत,
नव शौर्य  फलक  यश गढ़ना  है।

अरुणाभ किरण नव प्रगति समझ, 
नित   मानव    मूल्य   बचाना    है।
ईमान    पथिक   शिक्षा     नैतिक,
यायावर    सुफल    बनाना       है।

अहसान   वतन   सम्मान  समझ,
सद्भाव      सरसता     लाना    है।
सुख शान्ति सहज  समुदार हृदय,
नवप्रीति   मीत    बन   जाना   है। 

बाँटो    ख़ुशियाँ    जीओ   जीवन,
अधर मुस्कान  फूल  खिलाना  है। 
जब   शाम   ढले   नश्वर    जीवन,
निशि कीर्ति ज्योति   चमकाना  है।  

आगत   भविष्य    संदेश    अमर,
स्वर्णिम    नवशोध    रचाना     है।
सम्मान     हृदय      नारी    पूजन,
जन मन मंगल  भाव  जगाना   है। 

सहयोग  अन्य  सुखसार  समझ,
सर्वधर्म  मान     रख   पाना    है। 
परमार्थ  निरत  रख  लाज तिरंग,
कहीं  श्वांस  शाम  ढल जाना  है। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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