ये छोड़ दो पष्चिमी सहारा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

छोड़ दो ये पष्चिमी सहारा,
हमे वतन ने आज पुकारा
मानवता की ओर चलो,
हिंदु मुस्लिम एक सारा।
देश की आन को,
सभ्यता की शान को,
अपनी हर बान को,
इन्शा इन्सान को,
देश को ऊँचा उठाओं,
मार दो हैवान को
छोड़ नकल भेश कों,
ऊँचा उठाओ स्वाभिमान को।
तमसो म ज्योतिर्गमय का,
बुलन्द करो नारा।
छोड़ दो ये पष्चिमी सहारा,
वतन ने आज पुकारा।
हिन्द को जवाँ
जनता जर्नादन बन
जिंदगी गवाँ 
हिंसा को रोककर
वन हिन्द का महरवाँ
बाद पछतायेगा
आयेगा जब मौत का करवाँ
बाद पछतायेगा
आयेगा जब मौत का कारवाँ
भेदभाव भूल कर एक साथ,
बोलो ये हिन्द हमारा।
छोड़ दो ये पष्चिमी सहारा, 
भारत माँ ने आज पुकारा।
बेकारी मिटा शहर भी
किसान बनो गाँव में
खेती का काम कर
गीत गा शीतल तरु छाँव में
चंचल अटूट नव शक्ति का
हाथ और पाँव में
फिर उन्नत की किरणें बिखरेगी
शहर और गाँव में।
फिर जय जवान जय किसान,
हिन्द का पाश्चिमी बोलेगा सारा
आडम्बर की तोड़ जंजीरे,
स्फुटित कर दो प्रगति धारा।
छोड़ दो ये पाश्चिमी सहारा
भारत माँ ने आज पुकारा।।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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