संदेश
नव आशा जन अभिलाषा दूँ - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अभिलाषा बस जीवन जीऊँ, भारत माँ का पद रज लेपूँ। जीवन का सर्वस्व लुटाकर, मातृभूमि जयकार लगाऊँ। चहुँ…
माँ - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
उंगली पकड़ा के चलना सीखाती है माँ हर ज़ख्म पर मरहम लगाती है माँ जमाना जब भी हमें ठोकर लगाया उठा कर अपने सीने से छहलगाती है माँ जब भी भ…
कुछ भूल चलें - गीत - संजय राजभर "समित"
मतभेद के गुबार न फूटे , संबंधों के बंध न छूटे । आओ कुछ पल संवाद करें । कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।। लोक व्यवहार बड़ा जटिल है, इस…
संघर्ष - कविता - कर्मवीर सिरोवा
पिता के खुरदरे पैर जैसे ही दहलीज पर घर्षण करते थे, घर में वो निढ़ाल जिस्म एक ऊर्जा ले आता था। तिरपाल जैसी चुभती शर्ट ऐसे भीगी होती थी…
ये दौर कब जाएगा - कविता - अरविन्द कालमा
कब यहाँ जातिवाद खत्म हो पाएगा कब मानव सुखी जीवन जी पाएगा। इस दौर में मानवता शर्मसार हो रही पता नहीं ये दौर कब जाएगा।। इस दौर ने झेली ब…
ले चलो मुझको मेरे गाँव - कविता - अंकुर सिंह
मुझे खूब याद आता है, मेरा प्यारा प्यारा गाँव। बारिश के दिनों में जहां, चलती कागज की नाव।। बहुत याद आता है मुझकों, कभी अपनों का वो साथ।…
चलो जीना सीखें - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
चलो जीना सीखें उन्हीं से झुर्रियों भरे गालों से अधपके बालों से, अनुशासन के अनुभवों से चलो जीना सीखें उन्हीं से। ये खूबसूरत सांझ ढ़ली…
लफ्ज़ हर लफ्ज़ जो - कविता - परमार प्रकाश
लफ्ज़ हर लफ्ज़ जो दिल को छू जाता है वो मुहब्बत की बात कर लो तुम यारा... जिसके सर पर न हो माँ-बाप का सहारा उसे न तुम होने दो कभी भी बेसहा…
चढ़ो सुमन बन निज वतन - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन है बहु कीमती, नश्वर पर बहुमूल्य। पलभर का चितचोर जग, है अनमोल अतुल्य।।१।। मणि मुक्ता धन सम्पदा, सब जीवन आलम्ब। कर लो कुछ सत्काम ज…
सत्य - चर्चरी छंद - संजय राजभर "समित"
प्रेम राग बनी रहे, हर हाल में सच बोलिए। बात से कब क्या घटे ? तकरार में रस घोलिए।। आसमाँ झुकता रहा, …
हे पिता! - कविता - शुभ्रा मिश्रा
हे पिता! तुम्हारी अंगुली पकड़ कर अभी अभी तो चलना सीखा है मैंने। संभलना सीख ही नहीं पाई ना ही दौड़ना सीख पाई मैं। अभी आगे कितनी दूर है म…
समदर्शी - कविता - प्रवीन "पथिक"
सुख दुःख क्या? मन के विकल्प! इसी विचार से, कायाकल्प। समभाव रहे, जिसका मन। पाते रहे सुख, निज जीवन। रहे सदा खुश, अपना तन मन; आई कहती, ये…
नारी को अधिकार मिले - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध
जब से नारी को नारी का, सम्बल मिलना शुरु हुआ। वसुधा से उठकर नारी ने, हाथों से छुआ।। पग - बाधा बनकर नारी ने, नारी को अक्सर रोका। नारी …
जाति की खातिर - कविता - नीरज सिंह कर्दम
जाति की खातिर बचा रहे हैं बलात्कारी को न्याय कैसे मिलेगा अपराधी बना रहे हैं पीड़िता को । दलित की बेटी, दलित की बेटी मीडिया रोज चिल्लात…
कोरोना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
नजर पसारे भयभीत है लोग कही चुप्पी कही रोना ही रोना है रिश्तो में पड़ गई दरारे ऐसी आफत आई जहाँ देखो तहाँ कोरोना ही कोरोना है। पहि…
शब्द - कविता - प्रशान्त "अरहत"
मुझको जब दुनिया ने ठुकराया तुम्हारे पास आया। मैं नहीं भागा विमुख होकर तुम्हारे पास आया। जब अकेलापन नहीं भाया तुम्हारे पास आया। तुमन…
आह्वान - गीत - संजय राजभर "समित"
आओ मिलकर कदम बढ़ाएँ, मंजिल हमें पुकार रही है। सतत संघर्ष, उत्कर्ष करें, पग-पग विपदा मार रही है। बैठे हैं क्यूँ किनारे क्लांत ? उतरें अत…
एक समर अभी है शेष - कविता - श्रवण कुमार पंडित
शहीद हुए वीरों के, शौर्य मान अभी है शेष। तरकश में शर कस चुका, वार अभी है शेष। धधकती, बिलखती रोष, पर सत्ता है मदहोश। एक समर हो चुक…
प्रेमधुनी मधुमीत - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
बजे मुरलिया प्रेमधुन, चहुँदिशि भाव विभोर। दौड़ी आयीं गोपियाँ, राधा मन चितचोर।।१।। मनमोहन अभिनव मधुर, वंशीधर सुर राग। देख विमोहित राधि…
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
अजन्मी बेटी, करती पुकार। मत करो, मेरे आस्तित्व का तिरस्कार।। मैं भी तो हूँ, तेरी कल्पना। दूँगी बना, तेरा जीवन अल्पना।। दे दो मेरे, अस…
बाँझ - कविता - कर्मवीर सिरोवा
वो माँ जो बाँझ कही गई, समाज की फब्तियों से रोज मारी गई, जिसे लानतें फेंकी गई, जिसकी आँखों से अश्रुधार बहती रही; आज उसने आँसुओ को पोंछ …
दूर है न पास है - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
ये दिल बहुत उदास है, न भूख है, न प्यास है न मन्ज़िलों की है ख़बर न मिलने की भि आस है समझ को छोड़कर गयी, समझ ग़ज़ब हुआ सुनो वो ग़ैर है कि मीत…
सवेरा - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
इंतजार में धीरे-धीरे एक सवेरा निकल चला, अंधकार से ढ़का आसमां एक उजेला निकल चला। चाँद भी धीरे-धीरे गगन में मंद मंद मुस्काए रहा, कंचन…
सौतेला - कहानी - सुधीर श्रीवास्तव
माँ को रोता देख रवि परेशान सा हो गया। पास में बैठे गुमसुम बड़े भाई से पूछा तो माँ फट पड़ी। उससे क्या पूछता है? मैं ही बता देती हूँ आज ते…
सपनों साजन को - राजस्थानी कविता - आशाराम मीणा
मन माय मोर नाछ रया मिठी मिठी आवे हांसी, भाभी मारी फोन कर तो बात बताहू सांची। सपना माय साजन आया पकड़ी मारी बाय, मन मोहक सी बाता लाग्या…
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