कुछ भूल चलें - गीत - संजय राजभर "समित"

मतभेद के गुबार न फूटे , 
संबंधों  के  बंध न छूटे । 
आओ कुछ पल संवाद करें ।
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।

लोक व्यवहार बड़ा जटिल है,
इसकी भाषा पढ़ना होगा । 
रंग बदलता बड़ा कुटिल है ।
हँसकर सबको सहना होगा 
अवगुंठन का प्रतिनाद करें ।
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।

क्या लेकर के आया है तू ,
क्या लेकर के फिर जायेगा । 
एक दिन मौत जब आयेगी,
तब निरीह खुद को पायेगा । 
अब न रिश्तें में विवाद करें ।
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।

देह क्षणिक है पल दो पल का , 
दर्शन से गागर भर ले तू । 
कर्म-धर्म मानव का गहना
जीवन का सींचन कर ले तू । 
प्रेम का सकल अनुवाद करें 
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos