मतभेद के गुबार न फूटे ,
संबंधों के बंध न छूटे ।
आओ कुछ पल संवाद करें ।
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।
लोक व्यवहार बड़ा जटिल है,
इसकी भाषा पढ़ना होगा ।
रंग बदलता बड़ा कुटिल है ।
हँसकर सबको सहना होगा
अवगुंठन का प्रतिनाद करें ।
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।
क्या लेकर के आया है तू ,
क्या लेकर के फिर जायेगा ।
एक दिन मौत जब आयेगी,
तब निरीह खुद को पायेगा ।
अब न रिश्तें में विवाद करें ।
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।
देह क्षणिक है पल दो पल का ,
दर्शन से गागर भर ले तू ।
कर्म-धर्म मानव का गहना
जीवन का सींचन कर ले तू ।
प्रेम का सकल अनुवाद करें
कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)