प्रेम राग बनी रहे,
हर हाल में सच बोलिए।
बात से कब क्या घटे ?
तकरार में रस घोलिए।।
आसमाँ झुकता रहा,
उस व्यक्ति के पग में सदा।
धर्म संकट में घिरे,
फिर भी नही कटुता लदा ?
सत्य ही अभिसार है,
यह रूप रंग बना ढले।
मौत है गर सामने,
फिर भी वहाँ बढ़ता चले।।
त्याग है तप प्यार है,
यह साँस है गुलज़ार है।
जिंदगी हँसते खड़ी,
भव पार का पतवार है ।।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)