सपनों साजन को - राजस्थानी कविता - आशाराम मीणा

मन माय मोर नाछ रया मिठी मिठी आवे हांसी,
भाभी मारी फोन कर तो बात बताहू सांची। 

सपना माय साजन आया पकड़ी मारी बाय,
मन मोहक सी बाता लाग्या सो ग्या जुल्फा छाय।
कालज्या रा हुआ टुकड़ा टूटी मारी सांसी,
भाभी मारी फोन कर तो बात बताहु सांची।।

हाथो को तो चुडो मुलग्यो माथा की बिगड़ी मांगी,
आँख्या रो यो काजल मटग्यो मटगी राचनी मांदी।
नैना सू नैन मल्या बदन बलम को दासी।
भाभी मारी फोन कर तो बात बताहू सांची।।

रोम रोम हिवडा को खुलग्यो काया होगी राजी,
आधी रात डलकबा लागी निन्दा म आगी खांसी।
जाग्या जी मारा दोनों टाबर साजन की जागी काकी। 
भाभी मारी फोन कर तो बात बताहू सांची।।

निंदा सू उड़गया जी सपना गया बलम जी पाछी,
भोर हुई तो छिड़िया छहकी छी छी छी चांची।।
झूठा मोर मनका नाछ्या झूठी आवे हांसी,
भाभी मारी फोन कर तो बात बताहू सांची।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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