ले चलो मुझको मेरे गाँव - कविता - अंकुर सिंह

मुझे खूब याद आता है,
मेरा प्यारा प्यारा गाँव।
बारिश के दिनों में जहां,
चलती कागज की नाव।।

बहुत याद आता है मुझकों,
कभी अपनों का वो साथ।
कभी बड़े पीपल की वो छाँव,
लें चलों अब मुझकों मेरे गाँव।।

सड़क किनारे है मेरा गाँव,
वहीं है मां काली का धाम।
करते लोग खूब दर्शन पूजन,
यहां है जगाब्रह्म बाबा का नाम।।

गाँव में रहते मेरे मम्मी-पापा,
गाँव में है मेरा खेत खलिहान।
पापा वहीं खेतों में करते काम,
तभी कहलाते वो किसान महान।।

याद आता मुझको मेरा गाँव,
सरपंच जी लगाते जहां चौपाल।
यहां ना कोई कहता गुड मॉर्निंग,
सबके मुख से निकलता राधे-गोपाल।।

गाँव में रहते हरकू, प्यारे, राधेश्याम,
प्रेम भाव से करते सब अपना काम।
छोटा बड़ा का ना किसीमें कोई भेदभाव,
गाँव में सब हाथ जोड़ करते राम-राम।।

गाँव में दिखता संस्कार के भाव,
छोटे आज भी छूते बड़ों के पाँव।
कोई लेे चलो अब मुझकों मेरे गाँव,
जहां खूब मैं दौड़ता था नंगे पाँव।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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