शब्द - कविता - प्रशान्त "अरहत"

मुझको जब दुनिया ने ठुकराया तुम्हारे 
पास आया।
मैं नहीं भागा विमुख होकर तुम्हारे 
पास आया।

जब अकेलापन नहीं भाया तुम्हारे 
पास आया।
तुमने सीने से लगाकर था मुझे
अपना बनाया।

मैंने भटकन भी हृदय की थी सदा 
तुमको बताई
तुमने निराशा से बचाकर थी मुझे वो राह 
चुपके से दिखाई

घोर निर्जन में भी वो जीवन की आशा 
दिख रही है।
जो समय के इस पटल पर नाम मेरा 
लिख रही है।

तुम मेरे आस्तित्व मेरी चेतना की हो 
गवाही।
तुमने अपना साथ देकर मुझसे है कविता 
लिखाई।

साहित्य मेरी साधना है और मैं
साधक तुम्हारा।
तुम हमारे भाव की अभिव्यक्ति मैं
याचक तुम्हारा।

प्रशान्त "अरहत" - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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