लफ्ज़ हर लफ्ज़ जो - कविता - परमार प्रकाश

लफ्ज़ हर लफ्ज़ जो
दिल को छू जाता है
वो मुहब्बत की बात
कर लो तुम यारा...

जिसके सर पर न हो
माँ-बाप का सहारा
उसे न तुम होने दो
कभी भी बेसहारा।

देखता है खुदा सबको
खुदा को किधर देख रहे?
हवायें जिधर चलती है
क्यों तुम उधर देख रहे?

खुदा का है सिर्फ यह
ठिकाना दिल हमारा।

रहमते है जब उसकी तो 
क्यों नहीं बाँट रहे सबको
असहाय दिख नहीं रहे
दौलत दे रहे हो रब को

रब ने ही दिया है सब
यह धन जो है तुम्हारा।

मंजिले पा लेता है पर
जो जमीर छोड़ता नहीं
अपनी संस्कृति से मुख
कभी जो मोड़ता नहीं।

वही तो हर शख्स मिटाता
मुफ़लिस का अँधियारा।

परमार प्रकाश - रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos