दूर है न पास है - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

ये दिल बहुत उदास है, न भूख है, न प्यास है
न मन्ज़िलों की है ख़बर न मिलने की भि आस है

समझ को छोड़कर गयी, समझ ग़ज़ब हुआ सुनो
वो ग़ैर है कि मीत है, जो दूर है न पास है

सिसक रहा है दर्द किंतु आँसुओं की बेरुख़ी
चकित से सब निहारते, न कोई भी क़यास है

हरी धरा को देख देह दो घड़ी मचल गई
मगर न आई नींद, जाने किसका ये निवास है

उम्मीद साथ-साथ  ही रही हमारे हर घड़ी
इसीलिए तो राह में उजास ही उजास है।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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