ये दिल बहुत उदास है, न भूख है, न प्यास है
न मन्ज़िलों की है ख़बर न मिलने की भि आस है
समझ को छोड़कर गयी, समझ ग़ज़ब हुआ सुनो
वो ग़ैर है कि मीत है, जो दूर है न पास है
सिसक रहा है दर्द किंतु आँसुओं की बेरुख़ी
चकित से सब निहारते, न कोई भी क़यास है
हरी धरा को देख देह दो घड़ी मचल गई
मगर न आई नींद, जाने किसका ये निवास है
उम्मीद साथ-साथ ही रही हमारे हर घड़ी
इसीलिए तो राह में उजास ही उजास है।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)