नूरफातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
माँ - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
गुरुवार, अक्तूबर 15, 2020
उंगली पकड़ा के चलना सीखाती है माँ
हर ज़ख्म पर मरहम लगाती है माँ
जमाना जब भी हमें ठोकर लगाया
उठा कर अपने सीने से छहलगाती है माँ
जब भी भटके मंज़िल की तलाश में
मेरे लिए रात भर खुदा को पुकारती है माँ
हम भले ही पचास साल पार करले
मेरे बच्चे की उम्र ही क्या ये सुनाती है माँ
तपती धूप से जब भी घर आये हम
तड़फड़ा कर आंचल में छुपाती है माँ
माँ है तो पूरा दुनिया है हरा -भरा
हमारे खातिर कितने दुःख उठाती है माँ
मायके से जब भी ससुराल जाती है” नूरी”
आँखों में आँसू लिए दरवाजे पर आती है माँ
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