संदेश
परिणीता - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन्त हृदय अरुणिम प्रभात, नवजीवन की प्रिय आभा हो। बन इन्द्रधनुष नीलाभ हृदय, सतरंग ललित मधु छाया हो। शृङ्गार शतक सज पाटल तन, अभ…
संयुक्त परिवार-बरगद की छाँव - लेख - अंकुर सिंह
जब मैं घर से ऑफ़िस के लिए निकलता हूँ तो, रास्ते में मोड़ पर एक बरगद का पेड़ पड़ता हैं, लगता है बरगद का पेड़ कहता हैं मुझसे कुछ, बरगद के पे…
बेटियाँ - कविता - डॉ. राजकुमारी
जिस देश में शिशु बालिकाएं कोख में औजारों से अंग-अंग कटवाई जाती हैं। पेटी, डस्टबिन, नालों, मन्दिर की सीढ़ी अनाथालयों के आगे भी पाई जात…
ख़ाक़ का इक ढ़ेर हूँ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला
प्यार मेरा आजमा कर देख लो। इक दफा मुझको बुला कर देख लो। रात ओ दिन जल रही शम्मे वफ़ा। हो सके तो पास आकर देख लो। खाक का इक ढेर हूं तुम बि…
मासूम पेड़ - कविता - हरदीप बौद्ध
मुझको सब घर पर लाते पानी खूब पिलाते हैं, होता हूँ जब बड़ा मै मुझे आरी से कटवाते हैं। मै अपनी व्यथा किसी को बता नहीं पाता हूँ, देखो मै र…
बेटियाँ - कविता - रज्जन सिंह
घर के सूने आँगन का उजाला हैं बेटियाँ। बचपन मे मुस्कुराने की वजह हैं बेटियाँ। माँ की भूख तो पिता की प्यास हैं बेटियाँ। सभी रूपों को …
तृष्णा - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
आज कवि ढूढने चला मन तृष्णा का उपचार मन की तहो को खोलकर कवि उलझा बारम्बार ।। तृष्णा दु:ख का कारण तृष्णा है संताप दैहिक दैविक भौतिक तीनो…
व्हाट्सएप का झोल खुल गई पोल - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
आजकल अंग्रेजी के डी का महत्व बहुत हो गया है डिजिटल जमाने में हाल-चाल भी कैद हो गए हैं, अब कैसे हैं हम? कैसे बताएं? और खुद को हम कैसे द…
बेटी की तमन्ना - कविता - सुनीता रानी राठौर
बेटी की तमन्ना पहचान बनायें अपनी, करें उजाला शिक्षा से जीवन में अपनी। दे दो हक हमें स्वयं खुद निर्णय लेने की, हटाओ पाबंदियां आजादी दो …
सब खोकर होती विजय - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मुदित मना सब हो मुदित, खिले अधर मुस्कान। कौन कहे कब हो यहाँ, लघु जीवन अवसान।।१।। जीवन समझो युद्ध है, दो अपना अवदान। पाप पुण्य कुरुक…
व्यवहार कुशलता है बुद्धिमत्ता का पैमाना - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मनुष्य की बुद्धिमत्ता का पता उसके व्यवहार से चल जाता है। सामाजिक बुद्धिमत्ता अथवा व्यवहारिक बुद्धिमत्ता विशेष रूप से हमारे बहुत बड़े द…
पानी - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
जरा गर्दन उचकाकर देखो आसमान की तरफ धरती पर आने को आतुर है कोई बूँद बनकर पेड़ों की फुनगियां पकड़ कर पर हाय! तुम निष्ठुर ! धरा के सारे…
माता पिता के दायित्व - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
आज के इस व्यस्त वातावरण और तकनीकी युग में माता पिता के लिए भी अपने दायित्वों का निर्वहन कठिन होता जा रहा है। बढ़ती महँगाई ने जीवकोपार्ज…
समय - कविता - अरुण ठाकर "ज़िन्दगी"
मैं वही पल वही लम्हा वही खुशी वही गम हूँ । उम्र की हर खास आम वक्त की कड़ी हूँ । सफ़र की हर रफ़्तार का गवाह हूँ यकी कर । मैं ज़िन्दगी के …
तुम्हारी यादें - कविता - कुन्दन पाटिल
हर क्षण, हर पल हर कही हर जगह केवल और केवल तुम्हारी ही यादें। दूर हो प्रिय तुम पर पास है मेरे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही यादें। दर्द यह…
वो - कविता - वरुण "विमला"
मैं कुछ यूँ जानता हूँ उसकी खूबसूरती को, जैसे दाल में लगा दिया गया हो देसी घी का तड़का। बैठकर मेड़ पर, आराम करते हुए दिख जाए नाचता मोर। …
खेतों के भगवान देश के किसान - कविता - हरिराम मीणा
धान उगाता पेट जो भरता मान नही किसान का। नेता दुश्मन बन बैठे है आज उसी की जान का ।। किसान चल रहा कांटो पर और नेता वायुयान से। खिलवाड़ ह…
लॉकडाउन और बढ़ती बेरोज़गारी - निबंध - संस्कृती शाबा गावकर
क्या कोरोना के फैलने के खौफ से देशभर में लॉकडाउन की स्थिति पैदा कर बेरोज़गारी को जन्म दिया? दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस को विश्व स्व…
तन पर यौवन - कविता - ममता शर्मा "अंचल"
ओ रे बचपन फिर से सच बन मायूसी में खामोशी में चिंताओं में दुविधाओं में निर्धनता में नीरसता में पीर भुलाकर कर पुलकित मन ओ रे बचपन तू न…
मूसे - गीत - रविकांत सूर्यवंश "ग़ाफ़िल"
दो मांगे की रोटी खाकर, जब भूखा सो जाता मूसे। इस समाज के दायित्वों पर, प्रश्नचिन्ह हो जाता मूसे। नाम मात्र कपड़ों में लिपटी, नाम मात्र…
सेवा और रिश्ता - लघुकथा - उमाशंकर मिश्र
गुलाबी ठंडक पड रही थी और कोरोना के वजह से गाँव की पगडंडी पर कोई वाहन नही था आखिर लॉक डाउन का मतलब क्या है एक बुजुर्ग को एक युवा दंपति …
माँ तेरा ख़्याल हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
उदास शाम हैं न रंग हैं न छाँव हैं, मैं तन्हा हूँ, न पास शहर हैं न गाँव हैं।। मैं रो दूँ वक़्त, तुझमें न इतना जोर हैं, हँसा दे जिगरी व…
उलझन सी पीड़ा हूँ - कविता - मयंक कर्दम
मैं लाचारी सी आशा हूँ, इन कट पुतली की भाषा हूँ। अरब-खरब की अमृत सी, वेदों की परिभाषा हूँ, काट-काटकर बेच दिया है, जिन विदेशों के अखबा…
तेरे चेहरे के सिवा - कविता - कपिलदेव आर्य
इक तेरे चेहरे के सिवाय, कुछ और भाता नहीं, तेरा प्यारा सा मुखड़ा, मैं कहीं देख पाता नहीं! तू समा चुकी है मेरी नस-नस में, प्राण बनकर, …
माँ होती है प्रकृति जैसी - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
माँ शब्द अपने आप में इतना वृहत इतना जटिल तम शब्द है जिसपर व्यख्यान करने मे सदियाँ भी कम पड़ जाएंगी। यह छोटा सा शब्द जिसने सारे संसार को…
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर