मैं कुछ यूँ जानता हूँ
उसकी खूबसूरती को,
जैसे दाल में लगा दिया गया हो
देसी घी का तड़का।
बैठकर मेड़ पर,
आराम करते हुए
दिख जाए नाचता मोर।
ज्यों जेठ की दोपहरी में
घिर जाए अम्बर बादलो से।
जितना ख़ूबसूरत लगता है
धान के बालियों के बीच से
सुबह का निकलता सूरज।
जैसे माँ ने गर्म किया हो
धीमी आँच पर दूध
और ऊपर पड़ी हो
मलाई की सुनहरी परत।
वरुण "विमला" - बस्ती (उत्तर प्रदेश)