लॉकडाउन और बढ़ती बेरोज़गारी - निबंध - संस्कृती शाबा गावकर

क्या कोरोना के फैलने के खौफ से देशभर में लॉकडाउन की स्थिति पैदा कर बेरोज़गारी को जन्म दिया? दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना वायरस कैसे और कहाँ से आया इसको लेकर कही सारी मान्यताएं है पर इस बात की अभी तक कोई पृष्ठि नही हुई है।

कोविड-19 (COVID-19) का पूरा नाम Coronavirus Disease है। क्योंकि वह महामारी 2019 में फैली थी इसलिए इसका नाम Coronavirus Diseases 2019 पड़ा। CO- से कोरोना(Corona), VI- से वईरस(Virus) और D- का (Diseases) को मिलाकर COVID-19 नाम बना है। कोविड अब दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन गया है। वह लगभग पूरी दुनिया में फैल चुका है। इसी के चलते कई लोग इस बीमारी से संक्रमित हो चुके है और बड़ी संख्या में लोग अपनी जान भी गवा चुके है। इस बीमारी से लड़ने के लिए अब तक कोई वैक्सीन तैयार नही हुआ है। अभी तक इसकी खोज जारी है। इस महामारी के चलते ही लॉकडाउन की शुरुवात हुई है। 

लॉकडाउन अर्थात तालाबंदी। इस दौरान किसी को भी घर से बहार निकलने की अनुमती नही होती है। अर्थात जरूरत की चीज़ों जैसे दवाईया और खान-पान के समान को लाने के लिए कोई एक सदस्य को जाने की अनुमति होती है। इस दौरान कोई भी अनावश्यक काम से बाहर नही जा सकता। लॉकडाउन का मुख्य उद्देश्य कोरोना के बढ़ते संक्रमण में कटौती लाना है। इस वायरस से बचने के लिए आपने घरों में कैद रहना और सामाजिक दूरी का पालन करना अनिवार्य हो जाता है।

लॉकडाउन का कई लोगों ने फायदा उठाया है तो कई लोगों पर यह कहर बनकर टूटा है। जो लोग अपने काम में व्यस्थ रहने के कारण अपने परिवार जनों को समय नही दे पा रहे थे, उनके लिए यह मौका सुअवसर बनकर सामने आया है। लॉकडाउन के समय लोग अपने शौक पूरे कर रहे है, क्योंकि उनके अंदर दबी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उन्हें समय मिल रहा है। तो वे अपने हुनर को निखार रहे है। वायु प्रदूषण के लिए गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ जिम्मेदार है। और जबकि अब लॉकडाउन की वजह से  ज्यादा तर गाड़ियाँ सड़कों पर नही चल रही है इसलिए वायु और ध्वनि प्रदूषण में भारी कमी आई है। 

दूसरी ओर लॉकडाउन के वजह से बेरोज़गारी, मजदूर वर्ग की समस्या बढ़ गयी है। ऐसे में हज़ारों प्रवासी मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव चले गए है। उनकी आया के सभी स्त्रोत बन्द हो गए और उनके जीवन यापन में व्यापक कठिनाइयाँ आ गयी है। जो मजदूर थे रोजमर्रा की कमाई से अपने परिवार का पालन करते थे उन्हें बेहत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।कोरोना से लागू हुए लॉकडाउन की वजह से लाखों मजदूर वर्ग बेरोज़गार होने के कारण प्रमुख भारतीय शहरों से बाहर चले गए है। जो प्राइवेट सेक्टर में काम करते थे वह लॉकडाउन की वजह से अधिक प्रभावित हुए है। इसके साथ जो छोटे बिजनेस और छोटे कारोबार थे वह बंद हो चुके है।  श्रमिक और वंचित वर्ग को उनकी दैनिक जरूरत की चीज़े नही मिल पा रही है। तालाबंदी घोषित होते ही कंपनियों ने अपनी कंपनी पर ताल लगा दिया और जो मजदूर थे वह केवल बेरोज़गार ही नही बल्कि अनेक तरह की समस्याओं और असुरक्षा से घिर गए। लॉकडाउन के बाद कई लोग अपना रोजगार बदलकर गुजारा कर रहे है। इसमें फेरीवाले, निर्माण उद्योग में काम करने वाला श्रमिक, सड़क किनारे दुकाने लगाने वाले विक्रेता तथा रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले लोग शामिल है। लोगों ने अपनी नौकरियां खो दी है इसकी वजह से वह अपने घर का किराया नही दे पा रहे है। सरकार प्रवासी मजदूरों को उनके गाँव में य उसके आसपास ही काम उपलब्ध करने का प्रयास और तत्कालीन राहत तो दे सकते है लेकिन उनके कौशल के साथ न्याय नही कर रहे है।

सरकार ने संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करते समय ही विश्लेषकों ने बेरोज़गारी बढ़ने की चेतावनी दी थी। लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियों में ठहराव आ गया है और प्रवासी मजदूरों के पलायन से विश्लेषकों की आशंकाएं सही साबित हुई है। कोरोना लॉकडाउन की वजह से जो श्रमिक वर्ग को समस्या का सामना करना पड़ रहा है, उनकी सहायता में सरकार ने कामगार एंव मजदूरों के लिए  देश भर में बीस कंट्रोल रूम स्थापित किये है, जो कामगार और मजदूरों की समस्यों का समाधान करने का सफल प्रयास कर रहे है। 

संस्कृती शाबा गावकर - मड़गाँव (गोवा)

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