मासूम पेड़ - कविता - हरदीप बौद्ध

मुझको सब घर पर लाते पानी खूब पिलाते हैं,
होता हूँ जब बड़ा मै मुझे आरी से कटवाते हैं।
मै अपनी व्यथा किसी को बता नहीं पाता हूँ,
देखो मै रहता मासूम फिर भी काटा जाता हूँ।।

गर्मियों में मुझे याद करें सर्दियों में भूल जाते हैं,
खूब बराबर फल मेरे फिर भी चाव से लोग खाते हैं।
मै कितना भी जोर-जोर से रोता चिल्लाता हूँ,
देखो मै रहता मासूम फिर भी काटा जाता हूँ।।

काटते हैं लोग मुझे तो दर्द मुझे भी होता है,
कैसे कहूँ मै आपसे दिल मेरा भी रोता है।
मै प्रकृति से खुद अपना भोजन पाता हूँ,
देखो मै मासूम फिर भी काटा जाता हूँ।।

ना काटो मुझको मै जीवन तुम्हीं को तो देता हूँ,
कार्बनडाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन तुम्हें मै देता हूँ।
खाते हैं सब फल मेरे छाया मै सभी को देता हूँ,
देखो मै मासूम फिर भी काटा जाता हूँ।।

देता फल और फूल मै तो शर्म क्यों नही तुझको,
एक दिन सब पछताओगे गर यूँही काटोगे मुझको।
समझो मै आपके मर्जो में काम भी आता हूँ,
तो क्यों मै मासूम फिर भी काटा जाता हूँ?

हरदीप बौद्ध - बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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