बेटियाँ - कविता - रज्जन सिंह

घर के सूने आँगन का उजाला हैं बेटियाँ। 
बचपन मे मुस्कुराने की वजह हैं बेटियाँ। 
माँ की भूख तो पिता की प्यास हैं बेटियाँ। 
सभी रूपों को निभाती हैं बेटियाँ। 
कभी माँ, कभी बहन तो 
कभी पिता बनकर पालती  हैं बेटियाँ।
दुनियां की सब मुसीबतों को सहकर, 
अपना फर्ज़ निभाती हैं बेटियाँ। 

बड़े होकर दो घरों को संभालती हैं बेटियाँ। 
पत्नी हो कर भी, माँ जैसी फ़िक्र करती हैं बेटियाँ। 
मासूम हैं कोमल हैं, पर दिल से मशाल हैं बेटियाँ। 
बच्चों को प्यार, तो बड़ो का सम्मान हैं बेटियाँ। 

घर से निकलकर कुछ करना चाहती हैं बेटियाँ। 
आसमाँ मे उड़ने की फ़ितरत रखती हैं बेटियाँ। 
अपने सपनों को जीने का हक़ मांगती हैं बेटियाँ। 
मत तोड़ो उनके सपनों को, आज़ादी मांगती हैं बेटियाँ। 

रज्जन सिंह - बाँदा (उत्तर प्रदेश)

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