व्हाट्सएप का झोल खुल गई पोल - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

आजकल अंग्रेजी के डी का महत्व बहुत हो गया है डिजिटल जमाने में हाल-चाल भी कैद हो गए हैं, अब कैसे हैं हम? कैसे बताएं? और खुद को हम कैसे दिखाएं?व्हाट्सएप  बाजार है यहां तो खुल गई पोल और बज गया बाजा वाला सभी का हाल है चुगलखोर आंटी के बारे में पुराने जमाने की फिल्मों में पड़ोसियों को देखा था परंतु आज तो हाथों में ही चुगलखोर अंकल विराजमान है बड़ी ही बारीकी से गड़े मुर्दों को उखाड़ रहे हैं, अपनी अदाकारी से सबका दिल जीत कर फिल्म में खलनायक की भूमिका का रोल अदा कर रहे हैं और सब तरफ झोल, पोल और  रायता जी खोलकर बांट रहे हैं, व्हाट्सएप अंकल डी. का महत्व हमें नित समझा रहे हैं। ब्लॉक को अनब्लॉक कर बाजार अपना चमका रहे हैं, बड़े-बड़े विशेषज्ञ भी शीर्षासन  की योग मुद्रा में हैं हाथों में अंकल कब नाराज हो जाएं डी सा खुलासा कर बैठे इसका गणित लगाकर व्हाट्सएप लिंक फॉलो कर रहे हैं, बड़ा अजब माहौल कल जो नाम ए बी सी डी से जो दिमागी रोल में फिट किया था जो तुम ए ,बी, सी, डी से बचा लिया थ, वह फुल टू फराम मुद्रा में पूरा परिचय, दवा, दारू, टिकट सब तोते की तरह टैरो कार्ड निकाल रहा है। व्हाट्सएप अपने जमीनी स्तर पर आकर झोली खोलकर हाथों से शब्द बांट रहा है, डी से सबक और डब्लू से हाल-चाल देकर जी को संतुष्ट कर रहा हूँ बाल सफेद हैं या काले तुमने खाना खाया? तो तुम सामान लाए या नहीं? व्हाट्सएप से है जो झोल पोल खोल के बावजूद हमारे अंदर से बाहर तक का ख्याल रख रहा है और डिजिटल हाल रखा चाल का आईना बिल्कुल साफ दिखा रहा है।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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