बेटी की तमन्ना - कविता - सुनीता रानी राठौर

बेटी की तमन्ना पहचान बनायें अपनी,
करें उजाला शिक्षा से जीवन में अपनी।

दे दो हक हमें स्वयं खुद निर्णय लेने की,
हटाओ पाबंदियां आजादी दो जीने की।

नहीं अपनाओ तुम कभी दोहरे मापदंड,
न हीं लगाओ तुम संस्कार का प्रश्नचिन्ह?

न हीं हर पल कसौटी-तराजू पर चढ़ाओ,
न हीं पराया धन कह अपमानित कराओ।

सजाती रही मैं भी अरमानों की आशायें,
काटती रही जीवन मन में उम्मीदें सजाये।

न हीं तोड़ना तुम मेरे अरमानों की बस्ती,
सुनहरे सपनों के घरौंदे हैं हृदय में बनाये।

सर्वस्व न्योछावर की रखती हूँ मैं भावना,
सिर्फ परिवार की जिम्मेदारी में न बांधना।

न मरूं मैं बेआबरू हो कभी घुट-घुट कर,
न हीं मरूं मैं दामन को कुचलते देखकर।

संवेदना न जताना तुम सिर्फ ट्विटर पर,
संवेदना जताना हृदय से मेरे जीवन पर।

बेटियों संग पापा पत्नी को भी न्याय देना,
कानून बनाकर उसपे अमल भी कर लेना।

सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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