तन पर यौवन - कविता - ममता शर्मा "अंचल"

ओ रे बचपन 
फिर से सच बन
मायूसी में 
खामोशी में
चिंताओं में
दुविधाओं में
निर्धनता में
नीरसता में
पीर भुलाकर
कर पुलकित मन
ओ रे बचपन

तू निश्छल था
तू अविरल था
तू हँसता था
तू खिलता था
तू सुख भी था
तू दुख भी था
जब खोया था
आया जिस दिन
तन पर यौवन
ओ रे बचपन
फिर से सच बन

घुटन नहीं थी
चुभन नहीं थी
सिर्फ प्रीत  थी
सदा जीत  थी
सोच सरल थी
अति  निर्मल थी
जिज्ञासा  थी
सच भाषा थी
फिर से ले आ
वो भोलापन
ओ रे बचपन
फिर से सच बन।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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