ख़ाक़ का इक ढ़ेर हूँ - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला

प्यार मेरा आजमा कर देख लो।
इक दफा मुझको बुला कर देख लो।

रात ओ दिन जल रही शम्मे वफ़ा।
हो सके तो पास आकर देख लो।

खाक का इक ढेर हूं तुम बिन सनम।
इक दफा आंखें उठाकर देख लो।

जोगने बन चुकी रातें दिन हुए बेनूर हैं।
और भी मुझको मिटा कर देख लो।

अश्क सूखे आंख में अब लव सिले हैं।
रूह की चादर उठाकर देख लो।

वक्त कितना बेरहम था एक दिन।
दर्द के लम्हे छुपा कर देख लो ।

तेरे बिना बिल्कुल चला जाता नहीं।
फिर मुझे दिल से लगाकर देख लो। 

तुम न आओ तो बुला लो यार मेरे।
सुष पुराने पल चुरा कर देख लो।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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