तृष्णा - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"

आज कवि ढूढने चला
मन तृष्णा का उपचार
मन की तहो को खोलकर
कवि उलझा बारम्बार ।।
तृष्णा दु:ख का कारण
तृष्णा है संताप
दैहिक दैविक भौतिक
तीनों उपजे ताप ।।
क्या तू लेकर आया
क्या लेकर अब जायेगा
बोझ के नीचे दब रहा
सब धरा ही रह जायेगा ।।
मरने तक जिंदा रही
अधूरी कुछ इच्छाएं
वह ही भटके अन्त तक
अन्त: अश्व न साधे जाएं ।।
सम्बन्धों का सम्बन्ध भी
पिछला छूटा है हिंसाब
चुका रहे अपनी अपनी
सब पत्नी, बेटा, बाप ।।
मन की इच्छा मार 'सूर्य'
यही है तृष्णा का उपचार
परम धन को प्राप्त कर
कर खुद से सारोकार ।।

सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos