माँ तेरा ख़्याल हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा

उदास शाम हैं 
न रंग हैं न छाँव हैं,
मैं तन्हा हूँ,
न पास शहर हैं न गाँव हैं।।

मैं रो दूँ वक़्त, 
तुझमें न इतना जोर हैं,
हँसा दे जिगरी वो यार 
अब न पास हैं।।

तम-ए-शब सजी हैं, 
रसोई बेकरार हैं,
हाथ में ज़ख्म हैं 
कर्मवीर तू लाचार हैं।।

दूर बैठा हूँ माँ से, 
हर दिन बक़वास हैं,
तिरे चश्म-ए-दीद का 
माँ इन्तिज़ार हैं।।

न चराग़ हैं, न चाँद हैं 
बज़्म सुनसान हैं,
आसमान से भी 
आज गिरता अंगार हैं।।

सुब्ह तुझसे मुस्करा कर 
मिल लूँगा मैं,
एहसास बस ये हो 
पास में घर संसार हैं।।

कहकशां-ए-अब्र में 
माँ तेरी अनवार हैं,
कवि मुस्करा रहा हैं 
माँ तेरा ख़्याल हैं।।

कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)

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