संदेश
चलो बचाएँ प्रकृति को - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मातम है छाया हुआ , कैसी है यह भोर। त्रासद कोरोना कहीं , इतर निसर्गी शोर।।१।। कारण हम इस विपद के, प्रकृति म…
कैरियर सलाह - लेख - रुपेश कुमार
अभी कुछ दिन पहले ही दसवीं / मैट्रिक का परीक्षाफल प्रकाशित हुआ है , इसमें अधिकांश बच्चे सफल हुए हैं इनमें से बहुत सारे बच्चों के मन…
ओ जिंदगी - कविता - समुन्दर सिंह पंवार
ओ जिंदगी । कभी - कभी मैं सुस्त पड़ा रहता हूँ और देखता रहता हूँ पेड़ - पौधों को और सुनता रहता हूँ पक्षियों की चह चाहटों को, और कभ…
तुम्हे पाने की चाहत थी तो खोना भी ज़रूरी था - ग़ज़ल - बलजीत सिंह बेनाम
मोहब्बत की रवायत में तो धोखा भी ज़रूरी था ज़माने में मगर इसका हाँ चर्चा भी ज़रूरी था तभी तो रह सकी है दर्द की तासीर भी ज़िंदा तुम्हे…
आत्मसमर्पण - कविता - शेखर कुमार रंजन
मैं अपना गम तेरी खुशी में छुपा लूँगा तुझे याद कर खुद को भुला दूँगा । भूल जाऊँगा की मैं गुलाम पंक्षी तेरे दिल की पिजरे का हूँ , फ…
बाग़ों में गुल खिले तो मैं ग़ज़ल कहूँ - ग़ज़ल - मनजीत भोला
बाग़ों में गुल खिले तो मैं ग़ज़ल कहूँ महकी सबा चले तो मैं ग़ज़ल कहूँ कितना हसीन है मंज़र हरा-भरा बारूद नहीं उगे तो मैं ग़ज़ल कहूँ अपने…
सुरक्षा लॉक डाउन की पाबंदिया हटाना समय की मांग एवं जरूरत - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सुरक्षा एवं जीवन यापन दोनों ही जीवन जीने के लिए अति आवश्यक है। लाक डाउन लगाना व समय की मांग पर ढीला करना , मानवीय जरूरत के दो ऐसे…
आये अभिनव भोर - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
हटे सकल संताप मन, आये अभिनव भोर। नयी आश नित शक्ति हो, जीवन यापन डोर।। है फिसलन इस जिंदगी , तजती झट निज देह। रत हो …
चाहत मेरी रूह की - कविता - राजू शर्मा
वह कौन थी रूप की सहजादी, जिनके हिजाब में कायनात छुपी थी। मेरी भी इच्छा थी दीदार करने की, लेकिन न जाने वह किस ख्वाब में डूबी थी। …
दो जून की रोटी - कविता - शेखर कुमार रंजन
भूख मिटाती रोटियाँ,दो जून की ये रोटियाँ भूखे अपने थाली में, देख खुश हो जाती रोटियाँ गरीबों के थाली में प्याज सजे और रोटियाँ जब-ज…
तू मुझमें अभी जिंदा है - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
तू मुझमें अभी जिंदा है, तू मुझमे अभी बाकी है। ये तेरा ही तो साया है , जो अब भी मेरा साथी है। ये तेरा ही तो जलवा ह…
हर हर गंगे सुरसरी - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गंगाधर भागीरथी , पावन निर्मल धार। मोक्ष द्वार गोलोक का , पापशमन हरिद्वार।।१।। सकल पाप जीवन मरण , मिटे जगत …
संभव हो तो, कुछ सब्र करो - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
मत निकलो बाजार में तुम, कीमती आभूषण पहने तुम, हो गर संभव तो,योग करो । संभव हो तो, कुछ सब्र करो। लाना है सामान अगर,जाएं ! स्वयं…
जिंदगी - कविता - चीनू गिरि
कभी कड़ी धूप सी , कभी मीठी सी, कभी खट्टी सी, तो कभी मजबूरियों का सिलसिला, तो कभी खुशियाँ ही खुशियां, पल दो पल की जिंदगी। ख्वाहि…
आत्मनिरीक्षण - कविता - शेखर कुमार रंजन
चलो आज खुद को टटोलते है बचपन के भाँति, हौंसलों से बोलते है कुछ गंदगी बैठी,बढ़ते उम्र के साथ अब वक्त हो चला, चलो उसे निचोड़ते है। …
रोम रोम मे शिव हैं जिनके - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
रोम रोम में शिव हैं जिनके , विष पिया करते हैं । दुख दर्द जला क्या पाएगा , जो अंगारों से सजते हैं । मां सती बिछड़कर जब …
हो जीवन अरुणाभ - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जल वर्षण भू हरितिमा , घनश्याम नीलाभ। नेहसुधा आशीष नित, हो जीवन अरुणाभ।।१।। सहज प्रकृति गंगा समा , पावन चित्त विचा…
तेरे शब्द - मुक्तक - अंकिता
सलाम तेरी कलम को अदब तेरे कलाम को। लिखने के तेरे अंदाज ने पूरा कर दिया है तेरे नाम को।। शब्द तेरे नदियों की कल कल कवितायें पह…
जीवनदाता - कविता - शेखर कुमार रंजन
क्या परवाह करोगे उनका जिसने तुम्हें जीवन दिया क्या परवाह करोगे उनका जिसने तुम्हें पैदा किया जिसने तुम्हें बड़…
उलझन - कविता - उमेश राही
फिर हो गयी, सांस से प्राण की अनबन झर गये हैं शाख से, कुछ कुंआरे सुमन। सांस को सहे या प्राण को समझाये जिंदगी, जंग की बाजी कैसे …
कोरोना की जंग मे भारतीय युवा - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भारत में बेरोजगारी के चलते युवा भी दो श्रेणी में विभक्त हैं एक तो स्वावलंबी और दूसरे बेरोजगार । परंतु फिर भी कोरोनावायरस में जो भी …
कुछ पल साथ मेरे, आन बिताओ ना - ग़ज़ल - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
दिलो-चमन ,गुलजार कर जाओ ना। कुछ पल साथ मेरे ,आन बिताओ ना। गुलबदन तू ने छीना चैन-ओ-अमन, मेरी ग़ज़ल का मक्ता हीबन जाओ ना। सुब…
भाई जैसा इस दुनियां में दूजा यार कहां - गीत - अशोक योगी "शास्त्री"
ग़र छुपाने पड़े भाव भाई से तो प्यार कहां भाई जैसा इस दुनियां में दूजा यार कहां। सुवासित हो घर आंगन गर भाई से भेद…
अधूरी ख्वाईशें - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
ख्वाईशें भरी अधूरी जिंदगी, चाहतें गम हर खुशी पहचान हैं। ख्वाव में महकें सदा बन बंदगी, ख्वाईशें अरमान नित सम्मान हैं। ख्…
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