तोते की देख के चोंच,
उठने लगा संकोच।
कितना ही खा पाएगी?
छोड़ भतैरा जाएगी॥
सौंप बाग़ की डोर उसे,
कोस रहा था और किसे।
मैं ख़ुद, ख़ुद से अंधा था,
दुश्मन मेरा राचिंदा था।
अब जो औझल नैन रहे,
बगिया तक ना पाएगी।
छोड़ भतैरा जाएगी॥
पत्ते-पत्ते में बहार है,
नाकों पे चौकीदार है।
फिर भी चोर चुराता है,
किसको हिस्सा जाता है?
खपरा जंसद बीच टिका,
टंकी तक खो जाएगी।
छोड़ भतैरा जाएगी॥
शिक्षा क्यों बेज़ार भला
रेंग-रेंग औज़ार चला।
काग़ज़ ने न्याय बनाई
जन उसकी सुनों दुहाई।
नत्थी को बत्ती खलगी,
तुमको कहाँ बचाएगी।
छोड़ भतैरा जाएगी॥
अंधी बन दुनिया दौड़ी,
काली-सी रात निगोड़ी।
मिलकर उतरे दंगल में,
उँगली के इस चंगल में।
दौड़ अभी जो दूर हुई
आस-पास ना आएगी।
छोड़ भतैरा जाएगी॥
भाई छोड़ भतैरा जाएगी॥