नेहसुधा आशीष नित, हो जीवन अरुणाभ।।१।।
सहज प्रकृति गंगा समा , पावन चित्त विचार।
मृदुल भाव स्नेहिल मुखी , जीवन सुख आधार।।२।।
क्यों इतराते रूप पर , नश्वर है यह गात्र।
साधन तनु परमार्थ का , ज्ञान विनीत सुपात्र।।३।।
भज ले प्रभु मनमीत को, सेवा दीन दयाल।
जनमन हित माँ भारती , जीवन हो ख़ुशहाल।।४।।
ऊर्जा देती रविकिरण , प्रेरक नव निर्माण।
कुछ ऐसा पुरुषार्थ हो , हो मानव कल्याण।।५।।
मिटे सकल जग वेदना , अरुणिम सम मुस्कान।
अभय प्रेम उपकार मन , जीएँ सब सम्मान।।६।।
मन निकुंज फिर से खिले,प्रकृति बने अभिराम।
सूर्यमुखी समरथ सुखी,समरस जग सुखधाम।।७।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नयी दिल्ली