जो अंगारों से सजते हैं ।
सन्ताप अग्नि में समा गई।
फिर मिलन हुआ जब उमा हुई।
देवों को अमृत सौंप दिया ।
खुद पर्वत पर्वत वास किया।
पर खुद वो भस्म रमाते हैं।
वो भोलेनाथ कहाते हैं ।
शिव शंकर का अनुराग मिले ।
भोले भाले शिव में बदले ।
होता,कुछ कर्मो का फल होता ।
वही है सबके परमपिता ।
विष वहीपिया करते हैं ।
जो अंगारों से सजते हैं।
सुषमा दीक्षित शुक्लाराजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)