आत्मसमर्पण - कविता - शेखर कुमार रंजन

मैं अपना गम तेरी खुशी में छुपा लूँगा
तुझे याद कर खुद को भुला दूँगा ।
भूल जाऊँगा की मैं गुलाम पंक्षी तेरे दिल की पिजरे का  हूँ ,
फिकर नही , पिजरे को ब्रह्माण्ड समझकर जी लूँगा ।।

मैं अपना गम तेरी खुशी में छुपा लूँगा,
तेरी होठो की मुस्कान देख , अपनी आँखों का अश्क सूखा दूँगा। 
तू पा लो मंजिल इसलिए तेरी राहों का पथ बन जाऊँगा , 
बेहिचक तू रखना पैर मेरे जिस्मों पे , तुझे मलाल न हो इसलिए आँखे बंद कर लूँगा ।।

मैं अपना गम तेरी खुशी में छुपा लूँगा,
तुम मुझे जब-जब ढूंढ़ोगी , मैं तुझे तब - तब मिलूँगा। 
तुम मुझे मुझमें ढूंढोगी , मैं तुझे तुममें मिलूँगा , 
मैं तुझे तेरी रूह को अपने दिल में जगह दूँगा ।।

मैं अपना गम तेरी खुशी में छुपा लूँगा ,
तुझे याद कर खुद को भुला दूँगा ।।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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