मोक्ष द्वार गोलोक का , पापशमन हरिद्वार।।१।।
सकल पाप जीवन मरण , मिटे जगत संताप।
लें गंगा में डूबकी , मिटे त्रिविध जग पाप।।२।।
नवजीवन निज ध्येय पथ, लहरें उठी तरंग।
उथल पुथल संघर्ष नित , बहे सरित नवरंग।।३।।
श्रद्धा शुचि अध्यात्म का,हरिद्वार पुण्य स्थान।
सब पितरों का वास यह , देवों का सुखधाम।।४।।
साधु- सन्त रनिवास ये , दीन- दुखी अवलम्ब।
कोटि कोटि नित आगमन , माँ गंगा जगदम्ब।।५।।
पृथक् पृथक् धारा यहाँ , निच्छल गंग प्रवाह।
देखे गंगा आरती , पाये पुण्य अथाह।।६।।
करे त्रिपथगा पुण्यदा , सगरपुत्र उद्धार।
पतित पाविनी सुरसरित , महाकुम्भ दरबार।।७।।
अविरल जल तारक जगत , मानवता नितगान।
परम शान्ति समरस मिलन , होता गंगा स्नान।।८।।
जाति धर्म बिन भाष का , क्षेत्र रंग बिन गेह।
माँ गंगा ममता हृदय , अवगाहन जल देह।।९।।
जग प्रसिद्ध माँ जाह्नवी , गंगोत्री आधान।
ऋषिकेशी करुणामयी , पा गंगा वरदान।।१०।।
युग- युग से जगतारिणी , पापनाशिनी गंग।
हरो पाप आतंक को , खिले प्रगति सतरंग।।११।।
लोभ व्याधि हर छल कपट,कर आपस समभाव।
प्रीति नीति उन्नति पथी , भारत हो बिन घाव।।१२।।
कवि निकुंज पापी मना , कर गंगे! क्षमदान।
विनत करूँ पूजन सदा , सबल राष्ट्र वरदान।।१३।।
हरो कुमति गद्दार का , दो सम्मति सद्ज्ञान।
हे गंगे! कर मुक्ति भू , व्यभिचारी शैतान।।१४।।
हर हर गंगे सुरसुरी , पावन हर की पौड़।
पूर्ण करो मनकामना , लगे द्वार नित दौड़।।१५।।
पावन गंगा दशहरा , पुण्य दिवस वरदान।
सकल पाप का नाश हो , एकहि गंगा स्नान।।१६।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नयी दिल्ली