हर हर गंगे सुरसरी - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

गंगाधर     भागीरथी  , पावन     निर्मल     धार।
मोक्ष द्वार  गोलोक   का , पापशमन     हरिद्वार।।१।।

सकल  पाप  जीवन मरण , मिटे  जगत  संताप।
लें  गंगा   में   डूबकी , मिटे   त्रिविध  जग  पाप।।२।।

नवजीवन  निज   ध्येय पथ, लहरें   उठी   तरंग। 
उथल  पुथल  संघर्ष  नित , बहे  सरित   नवरंग।।३।।

श्रद्धा शुचि   अध्यात्म का,हरिद्वार  पुण्य   स्थान। 
सब   पितरों  का वास यह , देवों  का   सुखधाम।।४।।

साधु- सन्त  रनिवास ये , दीन- दुखी    अवलम्ब।
कोटि  कोटि  नित  आगमन , माँ  गंगा  जगदम्ब।।५।।

पृथक् पृथक् धारा  यहाँ , निच्छल   गंग   प्रवाह।
देखे   गंगा     आरती , पाये      पुण्य     अथाह।।६।।

करे     त्रिपथगा    पुण्यदा , सगरपुत्र      उद्धार।
पतित   पाविनी   सुरसरित , महाकुम्भ   दरबार।।७।।

अविरल जल तारक जगत , मानवता   नितगान।
परम   शान्ति   समरस मिलन , होता गंगा स्नान।।८।।

जाति  धर्म   बिन   भाष  का , क्षेत्र  रंग बिन गेह।
माँ   गंगा   ममता    हृदय , अवगाहन  जल  देह।।९।।

जग   प्रसिद्ध   माँ   जाह्नवी , गंगोत्री     आधान।
ऋषिकेशी    करुणामयी ,  पा    गंगा     वरदान।।१०।।

युग- युग   से    जगतारिणी , पापनाशिनी    गंग।
हरो   पाप  आतंक   को , खिले   प्रगति  सतरंग।।११।।

लोभ व्याधि हर छल कपट,कर आपस समभाव।
प्रीति  नीति  उन्नति पथी , भारत  हो   बिन  घाव।।१२।।

कवि निकुंज पापी  मना ,  कर  गंगे!    क्षमदान।
विनत  करूँ पूजन  सदा , सबल राष्ट्र     वरदान।।१३।।  

हरो  कुमति  गद्दार   का  , दो सम्मति   सद्ज्ञान।
हे  गंगे!  कर   मुक्ति   भू , व्यभिचारी     शैतान।।१४।।

हर हर  गंगे    सुरसुरी , पावन  हर    की   पौड़।
पूर्ण  करो   मनकामना , लगे  द्वार  नित    दौड़।।१५।।

पावन    गंगा    दशहरा , पुण्य    दिवस वरदान।
सकल   पाप  का   नाश हो , एकहि गंगा स्नान।।१६।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नयी दिल्ली

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