जीवनदाता - कविता - शेखर कुमार रंजन

क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया
क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें पैदा किया
जिसने तुम्हें बड़ा किया
          शिक्षा दिया, दुनिया दिया
जो सुख वो खुद भी देखे न
          वो भी तुम्हें सब कुछ दिया
क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया
हर उत्सवों पर तुम्हें
          कपड़ा दिया, तोहफा दिया
रात भर जागती रही
          ताकि, चैन से तुम सो सको
कभी कपड़ा बदलती
          तो कभी चिंता तेरी खलती
पीछे कभी भागकर खिलाती
          कभी चिंता में आँसू बहाती
क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया
जिसको तुमने घोड़ा बनाया
          जिसने तुम्हें अपनी पीठ पर घुमाया
जो तुम्हारी हर फरमाइशों को
          अपनी क्षमता अनुसार पूरा किया
क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया
खुद भींगे पर सोया
          तुम्हें सूखे पर सुलाया
खुद नहाने से पहले
          तुम्हें है नहलाया
क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया
तुम्हारा झुंझलाना बर्दाश्त किया
          चिल्लाना भी बर्दाश्त किया
देर रात तक टी०वी०
          तुम्हारा देखना बर्दाश्त किया
क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया
जो तुम्हारी मुस्कानों पर
          अपनी जान लुटाती रही
जो तुम्हारी इच्छाओं पर
          पसंद की व्यंजन बनाती रही
एक दिन तुम बड़े हो गए
          अपने ही दुनिया में खो गए
पर माँ आज भी चाहती है
          कि तेरा नाम हो यश मिले
अब बताओ क्या परवाह करोगे उनका
          जिसने तुम्हें जीवन दिया

शेखर कुमार रंजन
बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos