कुछ पल साथ मेरे, आन बिताओ ना - ग़ज़ल - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

दिलो-चमन ,गुलजार कर जाओ ना। 
कुछ पल साथ मेरे ,आन बिताओ ना।

गुलबदन तू ने छीना चैन-ओ-अमन,
मेरी ग़ज़ल का  मक्ता हीबन जाओ ना। 

सुब-सहर नाम लेता रहूं मैं तेरा,
मन -मंदिर में आकर ,बस जाओ ना ।

इल्तज़ा है, तुमसे फकत इतनी ,
प्यार के पल साथ मेरे ,बिताओ ना।

हूं 'विकल' वेदना से ,चंदन - सी बन,
मृगनयनी ! तुम समीप आ जाओ ना ।

नजरें सिर्फ तुम्हें खोजती हैं,सुख- 
दायिनी,और अधिक तड़पाओ ना।

प्रेम में हूं गाफिल, इंतहा हो गई, 
कहीं सब्र का बांध ,अब  टूट जाए ना ।

मदिरालय का मार्ग बंद नहीं पर,
माधुरी तुम्हीं  शाकी,बन आ जाओ ना।

रस ,छंद -वद्ध कविता-सी हो तुम,
आकर मुक्तक बन,कंठ-बस जाओ ना। 

आभार सदा मानेगा 'विकल' जानेमन ! 
चिलमन  से तो आज ,बाहर आओ ना।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

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