कैरियर सलाह - लेख - रुपेश कुमार

अभी कुछ दिन पहले ही दसवीं / मैट्रिक का परीक्षाफल प्रकाशित हुआ है , इसमें अधिकांश बच्चे सफल हुए हैं इनमें से बहुत सारे  बच्चों के मन में यह प्रश्न रहता है कि मैट्रिक के बाद अब हम क्या करें ?
कुछ बच्चों के तो माता-पिता इसके प्रति सजग रहते हैं और वह बच्चों को दिशा-निर्देश देते रहते हैं कि आपको किस दिशा में जाना है तदनुसार बच्चा भी उसी दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश करता है लेकिन अधिकांश बच्चे को यह पता नहीं होता है कि वह आगे चलकर क्या करना चाहता है, वह आगे चलकर क्या बनना चाहता है ,उसे कौन सा विषय का चुनाव करना चाहिए और उसे क्या बनना है उसके लिए किस दिशा में आगे बढ़ना है हमारी जो  अभी की शिक्षण व्यवस्था है हमारी अभी की जो शिक्षण व्यवस्था है उस व्यवस्था में मैट्रिक के बाद बच्चे इंटर में प्रवेश करते हैं अर्थात 11वीं 12वीं की ओर जाते हैं यहां पर बच्चों को एक स्ट्रीम चुनाव करना होता है वह किस स्ट्रीम मैं आगे बढ़ना चाहते हैं ,पढ़ना चाहते हैं अधिकांश बच्चे एक दूसरे की देखा देखी स्ट्रीम का चुनाव करते हैं वह  एक दूसरे का नकल करना चाहते हैंl

यदि कोई बच्चा इंजीनियरिंग की दिशा में जाना चाहता है तो वह इलेवंथ ट्वेल्थ साइंस की पढ़ाई करेगा ,इंटर में साइंस की पढ़ाई करेगा और जो बच्चा आगे चलकर कलाकार बनना चाहता है प्रशासनिक क्षेत्र में जाना चाहता है वह आर्ट्स की पढ़ाई करेगा और जो व्यक्ति आगे चलकर चार्टर्ड अकाउंट / एकाउंटिंग बिजनेस मैनेजमेंट की ओर जाना चाहता है जाना वह कॉमर्स की पढ़ाई कॉमर्स स्ट्रीम मिलेगा। 
यह हमारी शिक्षण पद्धति का एक हिस्सा है यहां पर विद्यार्थी को चुनाव करना पड़ता है। अब सवाल उठता है कि विद्यार्थी क्या इतने परिपक्व होते हैं कि वह विषय का चुनाव कर सकें यदि वह इतने परिपक्व नहीं है तो उन्हें सलाह देने वाला कौन है इन सब प्रश्नों को भी समझना और इसका हल करना भी जरूरी है। इन्हीं प्रश्नों के हल के लिए हमारे जैसे कैरियर काउंसलर की आवश्यकता होती है।
करियर काउंसलर गार्जियन को यह बताता है कि आपका बच्चा किस दिशा में अधिक से अधिक उपलब्धि हासिल कर सकता है किस दिशा में वह विशेषज्ञ बन सकता है आजकल यह देखने को मिलता है कि अधिकांश गार्जियन बच्चों को जिधर सभी भीड़ जाती रहती है वैसा ही बनाना चाहते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि क्वालिटी प्रोफेशनल्स पैदा नहीं हो पाता क्योंकि उनके भीतर छिपी प्रतिभा को कोई पहचान नहीं पाता है और उसे उसके प्रतिभा से इतर दूसरे क्षेत्र में भेज दिया जाता है जहां जाकर वह एक सामान्य सा जीवन सामान्य सा कार्य करने लगता है।

यदि उसकी प्रतिभा के अनुसार उन्हें काम दिया जाए उनको क्षेत्र में जाने की स्वतंत्रता दी जाए तो वह निश्चित रूप से वह एक विशेषज्ञ बनकर उभरेगा ।
इसे उदाहरण के द्वारा देखते हैं यदि सचिन तेंदुलकर के अभिभावक उन्हें गायक बनाना चाहते उनके ऊपर दबाव डालते हैं कि नहीं आपको गायक ही बनना है तो क्या वह इतनी उपलब्धि हासिल कर पाता, जितना क्रिकेट में हासिल कर पाया है, बिल्कुल ही नहीं क्योंकि अगर वह गायक बनता भी तो एक सामान्य स्तर का गायक बनता वह विश्व प्रसिद्ध उपलब्धि हासिल नहीं कर सकता था तो सचिन तेंदुलकर के माता पिता ने समय रहते उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसे उसी क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित किया जिस क्षेत्र में उसकी गहरी रुचि थी और यह छोटा सा सचिन तेंदुलकर दिखने में बहुत छोटा लेकिन विश्व प्रसिद्ध उनके नाम ना जाने कितने रिकॉर्ड्स कितने रिकॉर्ड शामिल हो गए ठीक उसी प्रकार यदि लता मंगेशकर को उनके माता-पिता प्रशासनिक क्षेत्र में भेजना चाहते हैं तो क्या यह संभव हो पाता कि जितना रिकॉर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड गीत गाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड उनके नाम है वह संभव हो पाता बिल्कुल नहीं क्योंकि वह उनकी रूचि के क्षेत्र के बाहर था उनकी रुचि शुरू से ही संगीत में थी इसीलिए उनके माता-पिता ने उन्हें उसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया फलस्वरूप आज वह है कभी सुप्रसिद्ध गायिका है।

मेरे कहने का मतलब यह है कि समय रहते यदि बच्चे की प्रतिभा को पहचाना जाए तो  भविष्य में वह अपने क्षेत्र के महारथी बनकर उभरेगा अपने क्षेत्र में और  उल्लेखनीय प्रगति करेगा और विश्व में नाम कमाएगा।
इसमें एक और चीज देखने को मिलता है कि जो अभिभावक अपनी जिंदगी में जिन चीजों को नहीं कर पाते हैं या या उनके दिल में यह लालसा रहती है कि शायद मैं यह कर पाता।
वह अपने बच्चे में वही चीज देखने की कोशिश करते हैं जो हम  नहीं कर पाए बच्चे को वही बनना चाहिए ताकि उनकी दिल की इच्छा पूरी हो सके।
यह सिद्धांत बहुत गलत है क्योंकि इस धरती पर हर एक व्यक्ति अद्वितीय होता है उसको ईश्वर ने एक विशेष कार्य के लिए इस पृथ्वी पर भेजा होता अगर हम उनकी प्रतिभा को उनके इस विशेष गुणों को पहचान पाए तो व्यक्ति इस दुनिया में अपना नाम कमा लेता है परंतु अधिकांश लोग अपनी प्रतिभा को पहचान नहीं पाते हैं और दूसरे क्षेत्रों में काम कर एक सामान्य जिंदगी जी कर व्यतीत कर देते हैं।
इस तरह की समस्याओं को दूर करने के लिए कैरियर काउंसलर की जरूरत पड़ती है यह कैरियर काउंसलर बच्चों को उनकी प्रतिभा का अहसास करवाता है और उसे उस दिशा में अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है जब बच्चे को प्रतिभा को पहचान लिया जाता है तो निश्चित रूप से उस क्षेत्र में आगे बढ़ने की क्षमता और बढ़ जाती है क्योंकि उसकी रूचि के अनुसार ही उसका क्षेत्र दिया जाता तो वह उसे मन से पढ़ाई करता है और जब मन से पढ़ाई करता है तो वह उस क्षेत्र में पारंगत हो जाता है उस विषय में विशेषज्ञता हासिल हो जाती है और वह आगे चलकर एक सफल विशेषज्ञ के रूप में उभरता है।
इसके ठीक उलट जब हम बच्चे के प्रतिभा को हम पहचान नहीं पाते हैं और वीर के साथ अपने बच्चे को आगे बढ़ने के लिए छोड़ देते हैं या जिसको हम जबरदस्ती करवाते हैं जो उसकी इच्छा नहीं है जिसमें उनकी रुचि नहीं है फिर भी हम उनसे वह करवाते हैं इसलिए असफलता हाथ लगती है और पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता तब उस समय अभिभावक को अपनी गलती का एहसास होता है।
जब किसी बच्चे को इंटरेस्ट वाला विषय दे दिया जाए इंटरेस्ट वाला क्षेत्र दे दिया जाए रुचिकर विषय दे दिया गया जाए रुचिकर क्षेत्र दे दिया जाए तो निश्चित रूप से उसमें बहुत अच्छा करेगा उपलब्धि वाला काम करेगा और शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।

अतः जरूरत इस बात की है कि बच्चों को मैट्रिक के बाद कम से कम उनकी छिपी प्रतिभा को जानने की कोशिश करनी चाहिए और तदनुसार ही उनके कैरियर का चुनाव करना चाहिए और उसी के आधार पर उनके इलेवंथ ट्वेल्थ के विषय दिलाने चाहिए ताकि भविष्य में जाकर के आपको बच्चे के लिए चिंतित ना होना पड़े कि मैंने तो बच्चे को अच्छे से पढ़ाया परंतु वह सफल नहीं हुआ।
वह सफल कैसे होगा उस क्षेत्र में जिस क्षेत्र में उसकी कोई रुचि ही ना रहा है जिस क्षेत्र में उसकी प्रतिभा नहीं है। इसलिए यह बहुत ही आवश्यक हो जाता है कि दसवीं के बाद बच्चों का उनके भीतर छिपी प्रतिभा को जाना जाए और इसे जानने के बहुत सारे तरीके हैं , अभिभावक होने के नाते परिवार के सदस्य होने के नाते आपको उसकी एक्टिविटी उसकी अभिरुचि मालूम होनी चाहिए जिसके बाद उन्हें एक दिशा दे सकते हैं इस प्रकार बच्चों को एक नई दिशा, नए विचारों के साथ बच्चों को अभिभूत कराया जाना चाहिए। अंत में मैं सभी बच्चों को उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं देता हूँ।


रुपेश कुमार - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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