दो जून की रोटी - कविता - शेखर कुमार रंजन

भूख मिटाती रोटियाँ,दो जून की ये
रोटियाँ
भूखे अपने थाली में, देख खुश हो जाती रोटियाँ
गरीबों के थाली में प्याज सजे और रोटियाँ
जब-जब ज्यादा भूख लगे, पेट पुकारे रोटियाँ।

भूख मिटाती रोटियाँ,दो जून की ये
रोटियाँ
श्रमिक जब काम करे तो, ही मिले उसे रोटियाँ
तृप्त हो जाते जब भी खाते मां की 
हाथों की रोटियाँ
ना फेको कचरे में इसको, भूख मिटाती रोटियाँ।

भूख मिटाती रोटियाँ,दो जून की ये 
रोटियाँ
पानी पीकर सो जाते है कितने परिवार, मिलती नहीं इन्हे रोटियाँ
जो मेहनत से भागते है, उसे सताती रोटियाँ
जो मेहनत करते है बाबू उसे ही मिलती रोटियाँ ।

भूख मिटाती रोटियाँ,दो जून की ये 
रोटियाँ 
तरह तरह की कार्य कराती देखो आज ये रोटियाँ


शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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