बचपन के भाँति, हौंसलों से बोलते है
कुछ गंदगी बैठी,बढ़ते उम्र के साथ
अब वक्त हो चला, चलो उसे निचोड़ते है।
चलो आज खुद को टटोलते है
बचपन की यादों का पिटारा खोलते है
उसी पुरानी तराजू पर खुद को तोलते है
चलो आज फिर हौसलों से बोलते है।
चलो आज खुद को टटोलते है
खुद की बुराइयों से दुश्मनी मोलते है
खुद की अच्छाइयों से दूसरे को जोड़ते है
चलो कसम खाकर सच - सच बोलते है।
चलो आज खुद को टटोलते है
बचपन की भाँति हौसलों से बोलते है।
शेखर कुमार रंजनबेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)