संदेश
पिया प्रशंसा - लोकगीत (मिर्ज़ापुरी कजरी) - संजय राजभर 'समित'
पिया मिलल मोहे रंगदार सखी, बड़ा मज़ेदार सखी ना। बाटे गबरू जवान, करे हमरा सम्मान। बोली भाषा हउऊय लहरेदार सखी, बड़ा मजेदार सखी ना। मोहे …
मैं चाहता हूँ - कविता - विपिन कुमार 'भारतीय'
मैं उड़ना चाहता हूँ खुले आसमान में आज़ाद पंछी की तरह। स्वछंद, निर्बाद, निर्विरोध। ऐसे ही जैसे पंछी उड़ता है। ना कहीं सीमाएँ ना रूकावटे…
सावन सुहाना आया - घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
सावन सुहाना आया, आई रुत सुहानी रे, बरसो बरसो मेघा, बरसाओ पानी रे। बदरा गगन छाए, काले काले मेघा आए, मोर पपीहा कोयल, झूमे नाचे गाए रे। र…
लौटकर आना - ग़ज़ल - महेश 'अनजाना'
अरकान: फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती: 2122 1212 22 तेरा इस क़दर रूठ कर जाना, कर देगा पागल लौटकर आना। गुलाबी होंठों का वो तब्बसुम, हो रह…
मानसून - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
छाया नभ घनघोर घन, दग्ध धरा बिन आप। मानसून आग़ाज़ लखि, मिटे कृषक अभिशाप।। मानसून की ताक में, आशान्वित निशि रैन। उमड़ रही काली घटा, कृषक…
आख़िरी रिश्ता - कविता - केवल जीत सिंह
आदमी का आख़िरी रिश्ता उन पेड़ की लकड़ी से होता है जिनकी आग़ोश में, जलकर इस तन को राख होना है। रिश्ता निभाने का सलीक़ा तो उन पेड़ की लकड़…
भूख - कविता - गाज़ी आचार्य 'गाज़ी'
हे ईश्वर तेरा खेल निराला होता है। सबको समान बनाया तूने, कोई अमीर तो कोई ग़रीब क्यों होता है? तेरा बनाया इंसान भूखा ही रहता है, कोई धन द…
प्रकृति संरक्षण - गीत - डॉ. शंकरलाल शास्त्री
महिमा है जो कुदरत की, लहरें आई कुदरत की, धरती माँ जो ओढ़े है, हरियाली की चुनरी सी। वेदों की ऋचाओं में, हवाओं की फ़िज़ाओं में, कण-कण में…
ऐसे मेरे सुनहरे सपने हैं - कविता - डॉ. सत्यनारायण चौधरी
ऐसे मेरे सुनहरे सपने हैं। जहाँ नहीं हो कोई पराया, सब अपने ही अपने हैं। जात-धर्म का भेद मिटे, चाहे कितने ही हों अलग वेश, बस प्यार फले- …
सावन - कविता - सीमा वर्णिका
नीलाम्बर में श्यामल घटा छाई, सावन की पहली बौछार आई। जून की गर्मी से तपी धरती ने, शुष्क उष्ण उर में शीतलता पाई। इंद्रधनुष से हुआ सतरंगी…
आज बोलता है - कविता - पारो शैवलिनी
हे युग-पुरुष! ओ प्रेमचंद तेरी लेखनी के नींव पर है टीका हुआ हिन्दी साहित्य का मानसरोवर, जिसकी लहर से उठती उफान नव-हस्ताक्षरों का है व…
प्रेमचंद - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
लमही बनारस में 31 जुलाई 1880 को जन्में अजायबराय आनंदी देवी सुत प्रेमचंद। धनपतराय नाम था उनका लेखन का नाम नवाबराय। हिंदी, उर्दू, फ़ारसी …
संकट जगाता मानवता - कविता - डॉ. रवि भूषण सिन्हा
मानव पर जब संकट आता है, मानवता जाग जाता है। गली-गली या मुहल्ले हो बुरा वक़्त जब आता है। आँखों में खटकने वाला भी, आँखों का तारा बन जाता …
प्रिये, अब तुम आ जाओ - गीत - प्रवीन 'पथिक'
तड़प रहा हृदय ये मेरा, सूरत तो दिखला जाओ। साँझ हो रही मन मधुबन में, प्रिये, अब तुम आ जाओ। कितने दिवस यूँ चले गए, कितनी रातें हैं बीत …
एक अधूरी दास्ताँ - कविता - सुनील माहेश्वरी
कितनी बातों की ख़ामोशी, उन्हें बतानी थी, हर एक अक्स की कहानी उन्हें बतानी थी। सुबह की इबादत और, शाम की अज़ान भी उन्हें बतानी थी। शौक चढ़…
सावन - गीत - बृज उमराव
रिम झिम बरसे मेघा सैंया, मनवां भीगा जाए। सावन की रुत बड़ी सुहानी, मन मोरा ललचाए।। जिया जले मोरा भीतर भीतर, उसको कौन बुझाए। तुम तो गए प…
मैं शिव हूँ - कविता - डॉ. राजेश पुरोहित
मैं आदिदेव अजन्मा, मैं अविकारी अविनाशी हूँ। ॐ स्वरूप में नित रहता, मैं श्रीराम की सेवा करता हूँ।। सृष्टि के लिए मैं, सब कुछ करता हूँ म…
उसे अपनों का काला सच दिखाई क्यों नहीं देता - ग़ज़ल - सुखवीर चौधरी
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती: 1222 1222 1222 1222 उसे अपनों का काला सच दिखाई क्यों नहीं देता, वो बहरा तो नहीं है फि…
पतंग की उड़ान - कविता - अंकुर सिंह
पतंग भरती जैसे उड़ान, बढ़ेगा वैसे मेरा मान। सफलता मेरे पंख होंगे, खुला होगा मेरा आसमाँ।। इरादे मेरे बुलंद होंगे, लेता आज मैं ये सौगंध।…
आओ प्रीतम मेरे - गीत - महेन्द्र सिंह राज
आओ प्रीतम मेरे नैना, तेरा सुपथ निहारें, कभी कभी अन्दर में झाँके कभी देखते द्वारे। आओ प्रीतम मेरे नैना तेरा सुपथ निहारें... फागुन बीत…
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