लौटकर आना - ग़ज़ल - महेश 'अनजाना'

अरकान: फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती: 2122 1212 22

तेरा इस क़दर रूठ कर जाना,
कर देगा पागल लौटकर आना।

गुलाबी होंठों का वो तब्बसुम,
हो रहा दिल देख कर दीवाना।

तेरे रुख़सार पे, गेसुओं की लटें,
काली नागिन बन कर लहराना।

सुर्ख़ आँखों के मयख़ाने में,
सुरूर छा गया पी कर पैमाना।

पाज़ेब पहन कर दबे पाँव चलना,
सुकून दे रहा निकल कर तराना।

आओ मिल के इश्क़ की राह चले,
फ़ना कर ख़ुद लिख कर फ़साना।

है अहलेे शहर 'अनजाना' राहों में,
मंज़िल है मुमकिन चलकर पाना।

महेश 'अनजाना' - जमालपुर (बिहार)

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